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elections in amethi : कितना सरल कितना कठिन

✍️शिव शरण त्रिपाठी-विनायक फीचर्स
 कभी कांग्रेस की खानदानी सीट मानी जाने वाली अमेठी से 2019 में पहले भाजपा की स्मृति ईरानी से चुनाव हारना और अब 2024 में राहुल गांधी का पलायन करना नि:संदेह यह बताने को काफी है कि कांग्रेस इस सीट पर स्मृति ईरानी से टक्कर लेने का साहस नहीं दिखा पा रही है। अलबत्ता कांग्रेस ने राहुल गांधी की बजाय अर्से तक गांधी परिवार के अमेठी, रायबरेली में चुनाव प्रबन्धक एवं वफादार सिपहसालार रहे किशोरी लाल शर्मा को चुनाव मैदान में उतारकर यह जताने की कोशिश अवश्य की हैं कि गांधी परिवार अमेठी से अपने पुराने रिश्ते को बरकरार रखना चाहता है। 
कांग्रेस के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि चूंकि राहुल गांधी पड़ोस में ही गांधी परिवार की खानदानी सीट रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं सो किशोरी लाल शर्मा को इसका लाभ मिलना तय है। यही नहीं चूंकि उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन के तहत रायबरेली व अमेठी सीट कांग्रेस के खाते में गई अतएवं दोनों ही सीटों पर गठबंधन की प्रमुख भागीदार सपा के वोटों का लाभ मिलना तय है। 
कांग्रेस के रणनीतिकार अपनी इस रणनीति से भले ही संतुष्ट हो, भले ही गांधी परिवार अपनी साख बचाने की कोई भी दलील दे पर सच्चाई यही है कि राहुल गांधी ने अमेठी सीट से चुनाव लड़ना कतई उचित नहीं समझा।संभवतः राहुल गांधी को अमेठी से ज्यादा सुरक्षित श्रीमती सोनिया गांधी की जीती हुई रायबरेली सीट ही लगी। 
जहां तक अमेठी सीट से किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतारने की बात है तो कांग्रेस के इस निर्णय से अमेठी में न तो कोई उत्साह की लहर है न तो शर्मा को अमेठी के कांग्रेस कार्यकर्ता सहयोग कर रहे हैं। कांग्रेस के पदाधिकारियों के अलावा न तो कोई बड़ा कांग्रेसी नेता उनके पक्ष में दिखाई दे रहा है और न ही उन्हें गांधी परिवार से कोई विशेष तरजीह दी जा रही है। श्री शर्मा के नामांकन के मौके पर प्रियंका पड़ोस में यानी रायबरेली में अपने भाई राहुल के नामांकन के अवसर पर जोश-ओ-खरोश के साथ उपस्थित थी लेकिन नजदीक ही अमेठी में नामांकन के समय न तो प्रियंका उपस्थित थी न ही कांग्रेस का कोई बड़ा नेता अमेठी पहुंचा।
जहां तक विपक्षी गठबंधन के प्रमुख दल सपा का कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन मिलने का सवाल है, हालात बता रहे हैं कि सपा समर्थक खासकर यादव समाज के लोगों का रूझान कांग्रेस प्रत्याशी की तुलना में भाजपा प्रत्याशी की ओर ज्यादा है। 
भाजपा ने यादव बाहुल्य वाले इस क्षेत्र में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ० मोहन यादव को स्मृति ईरानी के जुलूस से लेकर नामांकन पत्र दाखिल करने के मौके पर साथ रखा और उन्होने भी खुद को पड़ोस के सुल्तानपुर को अपनी सुसराल बताकर अपने को यहां का दामाद बताते हुए अपना हक जताया।भाजपा के इस दांव से यादव बिरादरी का रुख भी बदलना तय माना जा रहा है जिसका लाभ निश्चित ही स्मृति इरानी को मिलेगा।
यहां यह भी कम गौरतलब नहीं है कि अमेठी की जिन दो विधानसभा सीटों पर सपा विधायकों का कब्जा है उनमें से एक गौरीगंज के सपा विधायक सपा से लगभग नाता तोड़ चुके हैं। उनका पूरा परिवार हाल ही में भाजपा में शामिल हो चुका है। वैसे सपा विधायक राकेश प्रताप सिंह गौरीगंज सीट से लगातार तीन बार चुनाव जीतकर एक रिकार्ड बना चुके हैं। उनका इस सीट के मतदाताओं पर काफी अच्छा प्रभाव माना जाता है। ऐसे में उनके समर्थकों के अधिकाधिक वोट कांग्रेस के शर्मा की बजाय भाजपा की ईरानी को मिलना तय माना जा रहा है। 
सपा की दूसरी विधान सभा सीट अमेठी पर भी ऐसा ही नजारा दिखने को मिल रहा है। यहां से सपा की विधायक महाराजी देवी हैं।उनके बेटे और बेटी सहित पूरा कुनबा ही स्मृति ईरानी के पक्ष में चुनाव प्रचार करने में जुटा हुआ है। वैसे महाराजी देवी के पति गायत्री प्रजापति भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते एक अर्से से जेल में बंद हैं और उन्हें लगता है कि भाजपा की शरण में जाने से उनके पति व परिवार को राहत मिल सकती है। 
महाराजी देवी प्रजापति ओबीसी से आती हैं और उनकी बिरादरी कुम्हार है,अपनी बिरादरी के अलावा मौर्य, नाई जातियों में भी गायत्री प्रजापति के परिवार का काफी दबदबा है।
जानकार सूत्रों का कहना है कि जब 2019 में कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी को सपा-बसपा गठबंधन का पूरा समर्थन प्राप्त था तब भी भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी को ओबीसी के 70 फीसदी मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ था और कुर्मी तथा कोरी जाति का तो 80 फीसदी से अधिक समर्थन मिला था। बसपा के सपा से अलग होकर स्वतंत्र चुनाव लड़ने से बसपा प्रत्याशी ओबीसी जाति के रवि प्रकाश मौर्य भाजपा व कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यहां यह भी कहा जा रहा है कि बसपा के चलते मुस्लिम व दलित वोटों में बंटवारा तय है। जिसका खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ेगा। 
अमेठी में अभी तक कांग्रेस और सपा की ओर से बड़े नेता कोई खास दिलचस्पी नहीं दिख रहे हैं जबकि भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्मृति ईरानी के समर्थन में अब तक दो बार रैलियां करके उदासीन मतदाताओं को जोश में लाने के प्रयास कर रहे है।भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी यहां सभा कर चुके हैं।
कुल मिलाकर आज की स्थिति में अमेठी किसी के लिए भी सरल नहीं हैं एक ओर जहां भाजपा स्मृति इरानी को जिताने के लिए भरपूर ताकत के प्रचार प्रसार कर रही है तो किशन लाल शर्मा भी चुनाव जीतने के लिए गांधी परिवार से अपनी नजदीकियों को भुनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। (विनायक फीचर्स)
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