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राख होती सियासत और समाज की संवेदनशीलता | Politics and society's sensitivity are turning into ashes

✍️राकेश अचल- विभूति फीचर्स
मैं देश में चौतरफा राजनीति के चक्रवात की बढ़ती असंवेदनशीलता देखकर हैरान हूँ। राजनीति के चक्रवात में जो उजड़ेगा सो उजड़ेगा लेकिन सबसे पहले संवेदनशीलता राख होती दिखाई दे रही है । सत्ता हासिल करने के लिए बैचेन हमारे नेताओं को न राजकोट के गेम जोन में राख हुई जिंदगियों को लेकर को रंज है और न दिल्ली के एक अस्पताल के शिशु विभाग में हुयी नवजातों की मौत से कोई मतलब है। रैलियों और रोड शो पर करोड़ों रूपये खर्च करने वाले हमारे भाग्यविधाता एक दिन के लिए अपना चुनावी अभियान बंद कर न राजकोट गए और न दिल्ली के विवेक बिहार।

 गुजरात के राजकोट स्थित गेमिंग जोन में ढाई दर्जन से अधिक बच्चे और अन्य लोग जलकर राख हो गए ,लेकिन हमारे राजनेताओं का रोम तक नहीं फड़का । कागजी और औपचारिक संवेदनाओं से आगे नहीं बढ़े हमारे नेता। प्रधानमंत्री से लेकर राहुल गाँधी और दीगर दलों के नेताओं के लिए यह एक सामान्य दुर्घटना है। किसी दल का कोई नेता राजकोट सिर्फ इसलिए नहीं गया क्योंकि इससे उनके चुनावी दौरे में खलल पड़ता । उन्हें अपने रोड शो और रैलियां स्थगित करना पड़तीं। हमारी सरकारें बच्चों को देश की धरोहर मानती ही नहीं हैं,यदि मानती होतीं तो कम से कम एक दिन का राष्ट्रीय शोक तो मनाती ! हमारी सरकार के लिए मारे गए बच्चों और उनके परिजनों की कीमत ईरान के राष्ट्रपति रईसी के मुकाबले शून्य है
आपको बता दें कि राजकोट के टीआरपी गेमिंग जोन में लगी आग के मामले में अब तक 27 शव बरामद किए गए हैं। सिविल अस्पताल में मृतकों का डीएनए लिया गया है। शनिवार शाम पांच बजे भीड़भाड़ वाले गेम जोन में भीषण आग लग गई थी। 25 से अधिक लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रत्येक मृतक के परिजन के लिए प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से दो लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक्स को बताया कि घायल व्यक्तियों को 50,000 रुपये दिए जाएंगे।मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने रविवार सुबह घटना स्थल और अस्पताल का दौरा किया। उन्होंने प्रत्येक मृतक के परिजन को 4 लाख रुपये और प्रत्येक घायल को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की।

देश की राजधानी दिल्ली में पूर्वी दिल्ली के विवेक विहार इलाके में एक बेबी केयर सेंटर में आग लगने से 7 नवजात बच्चों की जान चली गई और 5 अस्पताल में भर्ती है। केयर सेंटर के मालिक के खिलाफ मामला दर्ज हो गया है।पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है।इस हादसे के बाद बच्चों के घर वालों को कोई जानकारी नहीं दी गई उन्हें तब पता चला जब उन्होंने सुबह अखबार पढ़े और टीवी पर न्यूज़ सुनी और अपने बच्चों को ढूंढते हुए बेबी केयर सेंटर पहुंच। यहाँ नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए एक दिन का किराया 15 हजार रुपया लिया जाता था।
दरअसल हम यानि हमारी व्यवस्था इस तरह के हादसों को लेकर कभी गंभीर नहीं रही। ऐसे हादसों के बाद जांच,मुकदमेबाजी ,मुआवजा जैसे ठठकर्म कर मुक्ति पा ली जाती है। समाज में इतनी नैतिकता नहीं बची की ऐसे हादसों के बाद कोई जन प्रतिनिधि या सरकारें जिम्मेदारी अपने ऊपर लें। हमें सियासत के अलावा आजकल कुछ सूझता ही नहीं। कोई मरता है ,मरे ! सरकार के पास मुआवजा देने के लिए पैसे की कमी थोड़े ही है । चार-छह लाख रूपये का मुआवजा चुटकियों में दे दिया जाता है । सरकारों की नजर में एक जिंदगी की कीमत चार-छह लाख रूपये से ज्यादा थोड़े ही है। चूंकि देश में लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण बाकी है इसलिए हमारे नेताओं की संवेदना इस समय वोट बटोरने में लगी हुई है। सारे नेता 24 में से 36 घंटे काम कर रहे है। वे अविनाशी हैं इसलिए उनके ऊपर इस तरह के हादसों का कोई असर नहीं पड़ता।

दुनिया के तमाम देश बच्चों को देश की अमानत मानते हैं और उनकी देखभाल के प्रति सीमा से ज्यादा संवेदनशील होते हैं। लेकिन हमारे यहां बच्चे राज्य की पूँजी और भविष्य के नेता नहीं है। हमारे समाज के प्रकांड पंडित हों या नेता वे अपने समाज से ज्यादा बच्चे पैदा करने का अनुरोध बार-बार करते हैं लेकिन इन बच्चों के जीवन से होने वाली खिलवाड़ से इनका कोई लेना देना नहीं ,क्योंकि देश को तो चुनावी सभाओं के लिए भीड़ चाहिए ,वोट देने के लिए भीड़ चाहिए। संस्कृति बचाने के लिए बच्चे चाहिए। सड़कों पर भीख मांगते बच्चों के लिए समाज और सरकारें जिम्मेदार थोड़े ही है।  

देश में आये दिन होने वाले हादसों में मरने वाले और अपंग होने वालों की लम्बी फेहरिस्त है । लोग बारूद कारखानों में मरें या सुरंगों में कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि हमारे पास संवेदनहीन सियासत है,संवेदनहीन समाज है। हम इस मामले में विश्वगुरु नहीं है। इस मामले में हमारी न जापान से होड़ है और न अमरीका से। चीन से तो हम होड़ करने की सोच ही नहीं सकते।हम इस मामले में सबसे अलग है। सचमुच घिन आती है ऐसी सोच से, ऐसे समाज से और ऐसी सियासत से।(विभूति फीचर्स)
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