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व्यंग्य : आस्तीन के सांप


✍पंकज शर्मा तरुण - विभूति फीचर्स 

सांप शब्द का नाम सुनते ही बड़े से बड़ा महावीर हो या पहलवान चूहे की भांति भय से कांपने लगता है। मैंने स्वयं यह दृश्य कई बार अपने जीवन काल में प्रत्यक्ष जंगल में, बस्ती में देखे हैं। सांपों में भी कई प्रजातियां होती हैं मगर चूहों को खाने वाला एक विशेषज्ञ सांप होता है। जिसे अंग्रेजी में रेट किलर कहते हैं।यह विषैला तो नहीं होता मगर इसकी फुफकार बड़ी ही भयानक होती है।

आजकल वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में घटती अप्रत्याशित घटनाओं में भी इसी प्रकार की चर्चाएं जोरों पर हैं! लोक सभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के अनेक दिग्गज नेता, नेत्रियां बुरी तरह से समाजवादियों तथा कांग्रेसियों  से पराजित हो गए। जब उनसे पूछा गया कि उत्तर प्रदेश में तो बुलडोजर बाबा ने तो सभी गुंडों, बदमाशों की वाट लगा रखी थी? फिर उसके चुनावी परिणाम विपरीत क्यों निकले? तो उनका उत्तर था कि हमारी ही पार्टी में भितरघात किया गया है पार्टी के दिग्गजों ने आस्तीन में सांप पाल रखे हैं! उन्हीं ने हम हारने वाले प्रत्याशियों को हराया है। प्रश्न यह खड़ा होता है कि आपने तो वैसे ही मोदी कुर्ता। बनवा रखा है, जो हाफ आस्तीन का है। जिसमें सांप को रहने का स्थान ही नहीं है। नेता जी कहने लगी कि इस हार के पीछे के कारणों का पता लगाना आवश्यक है। हारे हुए नेता की सूरत वाकई सांप के डसने के बाद होती है वैसी ही नीली हो रही थी!

यह तो ठीक है, मगर अयोध्या में जो कुछ हुआ वह तो बड़ा ही भयानक मंजर है। जिसे देख कर हर कोई अचंभित है हतप्रभ है। पिछली कई सदियों से राम जन्म भूमि, बावरी मस्जिद का विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चला,उसका हल  भव्य मंदिर बनवा दिया। प्रधान मंत्री ने स्वयं भूखे ,प्यासे रहकर अपनी उपस्थिति में प्राण प्रतिष्ठा करवाई। चौड़े- चौड़े बाजार बनवाए,अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा दिया, आधुनिक रेलवे स्टेशन फैजाबाद को अयोध्या कर के दिया, सरयू नदी पर पवित्र घाटों का निर्माण सहित अनेक विकास कार्य करवाएं, अभी भी चल रहे हैं,इसके बावजूद वहां की जनता ने इनको वोट नहीं दिया तो यह तो सरासर गलत ही कहा जाएगा। क्या हम हिंदुओं में इतने आस्तीन के सांप हो गए हैं?इसी कारण से आज सोशल मीडिया पर हमारे ही भाई हमें मोटी -मोटी गलियां दे- दे कर रात दिन कोस रहे हैं? हमें गद्दार तक कहा जा रहा है? हिंदुओं को डराया जा रहा है! क्या हिंदू सम्राट के चुनाव हार जाने से हम खतरे में आ गए है? इस प्रश्न पर हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए।पिछली कई सदियों से हम गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए थे शिवाजी,महाराणा प्रताप,अहिल्या बाई झांसी की रानी, लाला लाजपत राय जैसे महान लोगों ने हमारी हस्ती कभी नहीं मिटने दी और न कभी हिंदुओं को हतोत्साहित करने की बातें ही की।भगत सिंह, चंद्रशेखर, राज गुरु आदि अनेक शहीदों ने अपनी आजादी पाने के लिए हंसते- हंसते जान गंवा दी, मगर कभी हमारे देश वासियों को भयभीत नहीं किया, कभी गद्दार नहीं कहा। फिर आज यह धृष्टता क्यों? सत्ता का मोह इतना कि हम आसमान पर थूंकने लगे हैं?   एकता कैसे आएगी? जब हम अपनी आस्तीन में पल रहे सांपों को दूध पिला कर विषैला करेंगे! वह तो डसेगा ही,क्योंकि उसको निसर्ग ने अपने बचाव के लिए केवल विषदंत ही उपहार में दिए हैं उसके हाथ पैर नहीं जिससे वह स्वयं का बचाव कर सके। प्रजातंत्र की यही तो खूबसूरती है कि चुनाव में हार -जीत से नेता घबराते नहीं बल्कि अपनी ताकत को बढ़ा कर पुन: आते हैं, और पुन: सत्ता प्राप्त करते हैं। निराशा जनक बातें कमजोर लोग करते हैं। चाणक्य ने साधुवेश धारण कर चंद्र गुप्त को राजा बनाया था रावण ने वैभव प्रदर्शन कर अहंकार में पूरे वंश का नाश करवा दिया था! भले वह प्रकांड पंडित, शक्तिशाली, दसों दिशाओं का स्वामी था ,मगर एक जरा सी भूल उसे मृत्यु शैय्या तक ले गई। उसकी आस्तीन में भी विभीषण नाम का सांप था जिसने रावण को डस लिया। राजनीति के चक्रव्यूह में अस्तित्व गंवाना मूर्खता की श्रेणी में ही आएगा। आस्तीन वाली कमीज को प्रतिदिन झटक कर पहनें। सांप सारे सामने आ जाएंगे। बस फिर तुरंत उसका फन कुचल दीजिए।

✍पंकज शर्मा तरुण 


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