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पुस्तक चर्चा : अब तो बेलि फैल गई

✍️विवेक रंजन श्रीवास्तव - विनायक फीचर्स


कुछ किताबें ऐसी होती हैं जिन पर फुरसत से लिखने का मन बनता है, पर यह फुरसत ही तो है जो कभी मिलती ही नहीं। कविता जी ने अब तो बेलि फैल गई प्रकाशन के तुरंत बाद भेजी थी। पर फिर मैं दो तीन बार विदेश यात्राओं में निकल गया और किताब सिराहने ही रखी रह गई। एक मित्र आये वे पढऩे ले गये फिर उनसे वापस लेकर आया और आज इस पर लिखने का समय भी निकाल ही लिया।

 साहित्य वही होता है जिसमें समाज का हित सन्निहित हो। समस्याओं को रेखांकित ही न किया जाये उनके हल भी प्रस्तुत किये जायें। उपन्यास के चरित्र ऐसे हों जो मर्म स्पर्शी तो हों पर जिनसे अनुकरण की प्रेरणा भी मिल सके। इन मापदण्ड पर कविता वर्मा का उपन्यास अब तो बेलि फैल गई बहुत भाता है। उनका भाषाई और दृश्य विन्यास परिपक्व तथा समर्थ है। पाठक जुड़ता है। कहानी की अपेक्षा उपन्यास की ताकत जीवन और समाज की व्यापक व्याख्या है।  

विश्व साहित्य के महाकाव्यों में भी कथानक ही मूल आधार रहा है। कहानियां हमेशा से रचनात्मक साहित्य का मेरुदंड कही जाती हैं। उपन्यास को आधुनिक युग की देन कहना ज्यादा समीचीन होगा। रचनाकार के अभिव्यक्ति सामथ्र्य के अनुसार उपन्यास में शब्दावली, समकालीन आलोचनात्मक सोच, परिदृश्य के शब्द चित्र,  समाज की व्यवहारिक समझ, सहानुभूति और अन्य दृष्टिकोणों व्यापक संसार एक ही कथानक में पढऩे मिलता है। 

पाठक का ज्ञान बढ़ता है। बौद्धिक खुराक के साथ साथ मानसिक आनंद एवं रोजमर्रा की जिंदगी से किंचित विश्रांति के लिये आम पाठक उपन्यास पड़ता है। पाठक को उसके अनुभव संसार में उपन्यास के पात्र मिल ही जाते हैं और वह कथानक में खो जाता है। पाठक उपन्यास को कितनी जल्दी पढ़कर पूरा करता है, कितनी उत्सुकता से पड़ता है, यह सब लेखक की रोचक वर्णन शैली और कथानक के चयन पर निर्भर करता है। 

कविता वर्मा हिन्दी साहित्य सम्मेलन के स्तरीय पुरस्कार सहित कई सम्मानों से पुरस्कृत, अनेक कृतियों की परिपक्व लेखिका हैं जो लम्बे समय से विविध विधाओं में लिख रही हैं। किन्तु कहानी और उपन्यास उनकी विशेषता है। हिन्दी साहित्य में समाज का मध्य वर्ग ही बड़ा पाठक रहा है। स्वयं लेखिका भी मध्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं। अब तो बेलि फैल गई की कहानी मूलत: इसी वर्ग के इर्द गिर्द बुनी गई है। उपन्यास के चरित्रों को पाठक अपने आस पास महसूस कर सकता है।

यह कृति लेखिका का दूसरा उपन्यास है। इससे पूर्व वे छूटी गलियां नामक उपन्यास हिन्दी साहित्य जगत को दे चुकीं हैं। इस कृति के कथानक को  दीपक सहाय, गीता,  सोना, राहुल, विजय, नेहा आदि चरित्रों से रचा गया है। आज ज्यादातर परिवारों में बच्चे विदेश जा बसे हैं, उस परिदृश्य की झलक भी पढऩे मिलती है। 

भावनात्मक, मानसिक अंर्तद्वंद्व, उलझन, संवाद, सब कुछ प्रभावी हैं। रचनाकार स्त्री हैं, वे कुशलता से स्त्री चरित्रों की विभिन्न स्थितियों में मानसिक उहापोह, समाज की पहरेदारी, बेचारगी और  दोस्ती, सहानुभूति, मदद के सहज प्रस्ताव पर प्रतिक्रया जैसे विषयों का निर्वाह सक्षम तरीके  से करने में सफल रही हैं। मैं कहानी बताकर आपका पाठकीय कौतुहल समाप्त नहीं करूंगा, उपन्यास एमेजन पर उपलब्ध है। खरीदिये, पढिय़े और बताइये कि अब तो बेलि फैल गई की जगह और क्या बेहतर शीर्षक आप प्रस्तावित कर सकते हैं? लेखिका को मेरी हार्दिक बधाई, निश्चित ही बड़े दिनों बाद एक ऐसा उपन्यास पढ़ा जो मर्मस्पर्शी है, हमारे इर्द गिर्द बुना हुआ है और उपन्यास के आलोच्य मानकों की कसौटी पर खरा है।
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