धूल में लाठी चलाने का प्रयास है एग्जिट पोल | Exit polls are an attempt to throw a stick in the dust

✍️राकेश अचल -विभूति फीचर्स

Exit polls : भारत भी विचित्र किन्तु सत्य देश है ।  इस देश में हर विषय के विशेषज्ञ और भविष्यवक्ता मौजूद हैं ।  हाथ की लकीरें और ललाट पढ़कर भविष्य बताने वाले ही नहीं अपितु ईवीएम मशीनों में  बंद मतों की गणना से पहले ही ये लोग बता सकते हैं कि  कौन जीत रहा  है और कौन हार रहा है ।  इस विज्ञान को ' एक्जिट पोल ' कहा जाता है। एक्जिट पोल को मैं "धूल में लाठी चलाना" और' पोल के बाद का ढोल ' कहता हूँ ,जो मजबूरन बजाया जाता है ताकि चुनावी रण में थके-हारे लोग नतीजे आने से पहले कुछ तो भांगड़ा कर लें।

जाहिर है कि  चुनाव में जो मैदान में था वो जीतेगा भी और हारेगा भी। चुनाव परिणामों को लेकर हम और हमारा समाज खास तौर पर हमारा  मीडिया इतना उतावला है कि  इधर मतदान समाप्त होगा और उधर सभी टीवी चैनल भावी सरकार को लेकर अपना ज्ञान उगलना शुरू कर देंते हैं ।  वोटर के मन में क्या है  ये कोई  नहीं जानता, अगर जानता तो क्या बात थी। वैसे भी किसके मन में क्या है , ये जानना आसान काम नहीं है ? एक्जिट पोल सही होते हैं या गलत ये पूरा देश और इस तरह के पोल करने वाले भली-भांति  न सिर्फ जानते हैं बल्कि नतीजों का रुझान बताते हुए झिझकते भी हैं। लेकिन कभी-कभी धूल में लाठी चल भी जाती है।

यकीन मानिये कि मैं भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की ही तरह एक्जिट पोल्स पर कभी ध्यान नहीं  देता और अपने ज्ञान-ध्यान में लगा रहता  हूं। माननीय मोदी जी भी चुनावी रैलियों और रोड शो से फारिग होकर कन्याकुमारी स्थित विवेकानन्द स्मारक शिला पर ध्यान लगाने पहुँच गए थे।  विपक्ष ने उनके ध्यान को सजीव प्रसारित करने के खिलाफ चुनाव आयोग की शरण ली थी ,विपक्ष को आशंका है कि माननीय ध्यान के जरिये देश की उस  जनता को भ्रमित कर सकते हैं जो कि  अंतिम और सातवें चरण में मतदान करने वाली है।

एक्जिट पोल कितने सच ,कितने झूठ होते हैं इसके बारे में उनके अतीत को खंगालने की जरूरत है।  जहां तक मुझे याद आता है  कि भारत  में आजादी के बाद दूसरे आम चुनाव के दौरान साल 1957 में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन की ओर से पहली बार इसके मुखिया एरिक डी कॉस्टा ने सर्वे किया था।  हालांकि, तब इसे एग्जिट पोल नहीं माना गया था।  औपचारिक रूप से  1980 और 1984 में डॉक्टर प्रणय रॉय की अगुवाई में सर्वे किया गया। साल 1996 में भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने की थी।  तब पत्रकार नलिनी सिंह ने दूरदर्शन के लिए एग्जिट पोल कराया था, जिसके लिए सीएसडीएस ने आंकड़े जुटाए थे. इस पोल में बताया गया था कि भाजपा लोकसभा चुनाव जीतेगी और ऐसा ही हुआ। इसी के बाद से देश में एग्जिट पोल का चलन बढ़ गया।  साल 1998 में निजी न्यूज चैनल ने पहली बार एग्जिट पोल का प्रसारण किया था।

नतीजे आने कि पहले नतीजों के आसपास पहुँचने की  शुरुआत का श्रेय  संयुक्त राज्य अमेरिका को जाता है। साल 1936 में सबसे पहले अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन ने चुनावी सर्वे किया था।  तब पहली बार मतदान कर निकले मतदाताओं से पूछा गया था कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के किस उम्मीदवार को वोट दिया है ? जैसा कि  मैंने पहले ही कहा की एक्जिट पोल धूल में लाठी चलाने जैसा है ।  कभी -कभी ये 80  फीसदी तक सही निकलते हैं और कभी रत्ती भर भी नहीं। तो आने वाले तीन दिनों तक आप भी इस एक्जिट पोल से उड़ते हुए गुबार देखिये। अफ़साने सुनिए ,हकीकत का पता तो 4 जून 2024  की दोपहर तक ही चल जायेगा।
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url

RECOMMENDATION VIDEO 🠟

NewsLite - Magazine & News Blogger Template