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Nalanda University : 815 साल के इंतजार के बाद एक बार फिर से उद्घाटन का दिन

NALANDA UNIVERSITY

नालंदा विश्वविद्यालय, जिसे प्राचीन काल में विश्व के शिक्षा केंद्र के रूप में जाना जाता था, आज पुनः अपने नए कैंपस के साथ उद्घाटित हुआ। इस विश्वविद्यालय का नया कैंपस बिहार के राजगीर में स्थित है और इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। यह विश्वविद्यालय भारत और पूरे एशिया के कई देशों की विरासत में शामिल है। इसके नए कैंपस का उद्घाटन करते समय पीएम मोदी ने कहा, "नालंदा विश्वविद्यालय को मुगल आक्रमणकारियों ने जलाया, लेकिन आग से ज्ञान को नष्ट नहीं किया जा सकता। नालंदा विवि का ये नया कैंपस विश्व को भारत के नए सामर्थ्य का परिचय देगा। नालंदा बताएगा कि कैसे राष्ट्र इतिहास को पुनर्जीवित करके बेहतर भविष्य की नींव रख सकता है।" इस अवसर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी उनका स्वागत किया और इसे बिहार के लिए एक ऐतिहासिक दिन बताया।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास: [history]

  • नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी।
  • यह विश्वविद्यालय दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है

नालंदा विश्वविद्यालय भारतीय इतिहास और शिक्षा का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली का अद्वितीय उदाहरण है जो भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ विश्वभर में ज्ञान का प्रकाश फैला रहा था। नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवशाली इतिहास विभिन्न कालों में महत्वपूर्ण विद्वानों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता रहा है।

स्थापना और प्रारंभिक युग

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी। यह विश्वविद्यालय बिहार राज्य के वर्तमान नालंदा जिले में स्थित था। प्रारंभ में यह बौद्ध धर्म और दर्शन के अध्ययन का प्रमुख केंद्र था, लेकिन धीरे-धीरे यहाँ अन्य विषयों का भी अध्यापन प्रारंभ हुआ। 

शैक्षिक संरचना

नालंदा विश्वविद्यालय की शैक्षिक संरचना अद्वितीय और अत्यधिक संगठित थी। यहाँ दस हजार से अधिक छात्र और दो हजार शिक्षक रहते थे। विश्वविद्यालय में अनेक विहार और अध्ययन केंद्र थे जहाँ विभिन्न विषयों का अध्ययन और शोध होता था। नालंदा में धर्मशास्त्र, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र, तर्कशास्त्र और व्याकरण जैसे विषयों का विस्तृत अध्ययन होता था।

प्रसिद्ध विद्वान

नालंदा विश्वविद्यालय ने अनेक प्रसिद्ध विद्वानों को जन्म दिया, जिनमें से कुछ प्रमुख नाम नागार्जुन, धर्मकीर्ति, आर्यभट्ट और जीवक हैं। इन विद्वानों ने न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में अपनी विद्वत्ता का परचम लहराया। 

विदेशी छात्र और शिक्षक

नालंदा विश्वविद्यालय का आकर्षण सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं था। यहाँ चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत और अन्य एशियाई देशों से भी छात्र और शिक्षक आते थे। चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने नालंदा में अध्ययन किया और यहाँ के शैक्षिक वातावरण का विस्तृत विवरण अपनी रचनाओं में दिया।

पतन और विनाश

नालंदा विश्वविद्यालय का पतन 12वीं शताब्दी में शुरू हुआ जब बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया। इस आक्रमण में विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में रखी लाखों पांडुलिपियाँ जला दी गईं और यहाँ के विद्वानों का नरसंहार किया गया। इस विनाशकारी घटना के बाद नालंदा विश्वविद्यालय धीरे-धीरे गुमनामी में चला गया।

पुनरुद्धार

हाल के वर्षों में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। 2010 में भारतीय सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित करने के लिए एक विधेयक पारित किया और 2014 में यह विश्वविद्यालय पुनः खुला। नया नालंदा विश्वविद्यालय आधुनिक शिक्षा और शोध के साथ प्राचीन ज्ञान परंपराओं को भी संरक्षित करने का प्रयास कर रहा है।

निष्कर्ष

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास हमें भारतीय शैक्षिक प्रणाली की महानता और धरोहर की याद दिलाता है। यह न केवल एक शैक्षिक संस्थान था बल्कि यह ज्ञान, संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक भी था। नालंदा विश्वविद्यालय की विरासत को पुनर्जीवित करना और इसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है।

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