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दलित समाज के नियुक्ति में आरक्षण की हकमारी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा हेमंत सरकार संज्ञान ले अन्यथा दलित समाज आंदोलन करने को बाध्य होगा

 

उपरोक्त बातें आज आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष सह कांके विधान सभा क्षेत्र के पूर्व प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने झारखंड के मुख्यमंत्री को आज भेजे गये ईमेल के माध्यम से लिखे गये पत्र की जानकारी देते हुए उक्त बाते कही । इन्होने यह भी बताया की हद तो तब हो गया की जेपीएससी द्वारा वन क्षेत्र पदाधिकारी के 170 पदों पर किये जा रहे नियुक्ति में मात्र एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किया गया है जब की उन्हे 10% आरक्षण के हिसाब से 17 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होनी थी । 

वहीं दूसरी ओर खूंटी में 150 पदों के लिए चौकीदारों की सीधी भर्ती में अनुसूचित जाति वर्ग के आरक्षण को शुन्य कर दिया गया है जबकि उन्हें 15 पद आरक्षित किए जाने थे और तो और पलामू में भी चौकीदार के 155 पदों पर सीधी भर्ती में अनुसूचित जाति के आरक्षण को शुन्य कर दिया गया है जबकि उन्हें नियुक्ती मे आरक्षण 15 पद पर आरक्षित किया जाना था सबसे दुखद पहलू तो यह है की पलामू में सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति वर्ग के लोग निवास करते हैं और पलामू संसदीय क्षेत्र भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित भी किया गया है 

श्री नायक ने आगे कहा की झारखंड में दलितों की जबरदस्त और घोर उपेक्षा की जा रही है जिसका ही उदाहरण है की अनुसूचित जाति वर्ग से मंत्री पद के लिए संघर्ष करना पड़ता है तो दूसरी ओर अनुसूचित जाति आयोग 4 वर्षों से खाली पड़ा हुआ है अभी तक अनुसूचित जाति आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की गई रांची में मेयर के चुनाव के पद में अनुसूचित जाति के हो रहे आरक्षण को भी समाप्त किया गया है । ऐसे में मैं स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूं कि माननीय हेमंत सोरेन साहब दलितों के सब्र की परीक्षा न लेने का कार्य करें अन्यथा दलितों का जब सब्र का बांध टूटेगा तो इसके गंभीर परिणाम सरकार को भुगतना पड़ेगें l

श्री नायक ने हेमंत सोरेन से अविलंब तुरंत संज्ञान लेने का अपील और अनुरोध करते हुए कहा कि यह जो अनुसूचित जाति के आरक्षण की जो हाकमरी की जा रही है उसको तुरंत रोका जाए अन्यथा अनुसूचित जाति समाज के पास आंदोलन करने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचेगा इसलिए समय रहते इस त्रुटि को अविलंब सुधार किया जाए ताकि अनुसूचित जाति समाज की नियुक्ति में हो रही है आरक्षण की हक मारी को रोका जा सके और उन्हें न्याय मिल सके|
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