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चांडिल डैम विस्थापितों के गांव में अवैध जल भंडारण का जिम्मेवार और जवाबदेही कौन - राकेश रंजन

ईचागढ़ - पिछले तीन दिनों से लगातार बारिश होने के वजह से चांडिल डैम विस्थापितों के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा । चारों ओर तबाही का मंजर देखने को मिला। जब कभी भी कहीं पर प्राकृतिक आपदा होने की संभावना होता है तो सरकार, प्रशासन, पदाधिकारी, विभाग अलर्ट जारी करते हैं ,जन चेतना, डुगडुगी ,सायरन के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है, जान माल का क्षति ना हो , इसके लिए पूर्व में ही आपदा से निपटने के लिए योजना तैयार किया जाता है ,पर झारखंड राज्य के चांडिल अनुमंडल के ईंचागढ़ विधानसभा में बहुउद्देशीय परियोजना चांडिल डैम इकलौता ऐसा क्षेत्र है ,जहां इन सारी चीजों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। यहां के जन प्रतिनिधि पदाधिकारी को विस्थापितों के जान माल का कोई परवाह नहीं है। लगातार अवैध जल भंडारण करने के कारण ईचागढ़ प्रखंड के बाबूचामदा, उदल, कुरुकतूपा, पातकुम, ईचागढ़, कालीचामदा, लोपसोडीह, दियाडीह , दयापुर, कुमारी, झापागोड़ा, उदाटाँड, बान्दावीर केंदाआन्दा ,लावा, बहङाडीह, सीमा ,डिटाँङ , डिमूडीह, पियालडीह , हाथीनादा गांव जलमग्न हो गया। 


हर वर्ष विस्थापितों को इस दंश से गुजरना पड़ता है पर इस बार विकट परिस्थिति उत्पन्न हो गया । तब ,जब लगातार जल स्तर बढ़ने लगा लोगों के घर में पानी घुसने लगे और देखते ही देखते मकान धंसना शुरू हो गया ।ईचागढ़ प्रखंड के बाबूचामदा गांव के 30, कालीचामदा के 70 लोपसोडीह के 7 ,कुकङू प्रखंड के दयापुर गांव के 27 ,कुमारी के 40 झापागोड़ा के बाद 7,उदाटाँड के 4, केंदाआन्दा के 4 नीमडीह प्रखण्ड के लावा से 17,बहरागोङा से 11 मकान धंस गया और घर धंसने का सिलसिला लगातार जारी है। कोई परिवार प्लास्टिक का टेंट के नीचे तो कोई पेड़ों के नीचे तो कोई स्कूल ,पंचायत भवन में रुके हुए हैं। सरकारी कागजातों में राहत कार्य के क्रियाकलाप दिखाएं जाएंगे ,पर हकीकत यह है किसी भी गांव में प्रशासन अथवा पदाधिकारी द्वारा किसी तरह का कोई भी मदद अथवा राहत सामग्रियां नहीं दिया गया। पदाधिकारी पहुंचे और अपने से नीचे पदाधिकारी को आदेश देकर चले गए। नीचे के पदाधिकारी मुखिया ग्राम प्रधान को आदेश देकर चले गए और विस्थापित अपने जान माल, गाय, बकरी, मवेशी, मुर्गी ,बत्तख को बचाने में जुटे रहे। 


प्रखंड पदाधिकारी द्वारा अनुमंडल पदाधिकारी को रिपोर्टिंग किया गया कि विस्थापितों के जानवरों को सामानों को महिला पुरुष बच्चे बुजुर्ग को जेट के माध्यम से निकाला जा रहा है पर जहां सबसे ज्यादा आवश्यकता था मगर न जेट पहुंचा ना खाद्य सामग्रियां पहुंचा ,सिर्फ कागजातों पर राहत कार्य पहुंचता रहा । आखिर इस लापरवाही का कारण क्या हो सकता है ?क्या विस्थापितों का जान माल का कोई कीमत नहीं है? क्या विस्थापित ने देश के विकास के लिए जमीन देकर कोई गुनाह क्या है? आज प्रश्न खड़ा होता है अंचल अधिकारी, अनुमंडल पदाधिकारी, उपायुक्त व तमाम पदाधिकारियों से कि चांडिल डैम के विस्थापितों का‌ आखिर कौन जिम्मेदार होगा? कौन करेगा विस्थापितों के नुकसान का भरपाई? उक्त बातें विस्थापित अधिकार मंच के अध्यक्ष राकेश रंजन ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा।
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