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क्या सचमुच भरोसा करने लायक है चीन ?

✍मनोज कुमार अग्रवाल

भारत चीन के बीच सीमा पर पैट्रोलिंग को लेकर हुए समझौते को लेकर उम्मीद जताई जा रही है कि अब भारत और चीन के बीच गलवान जैसा टकराव  नहीं होगा। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रिक्स समिट में जाने से पहले इसे बड़ा कदम बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि भारत और चीन के बीच एलएसी पर पेट्रोलिंग के लिए सहमति होने से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद सुलझ सकता है और टकराव में भी कमी आ सकती है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि भारतीय और चीनी सैनिक मई 2020 में सीमा पर गतिरोध शुरू होने से पहले की तरह गश्त फिर से शुरू कर सकेंगे। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भी घोषणा की है कि भारत और चीन हिमालय में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गश्त व्यवस्था पर पहुंच गए हैं और इससे सैनिकों की वापसी और तनाव का समाधान हो सकता है। 

लेकिन इतिहास के मद्देनजर सवाल फिर मौजूद है कि क्या भारत चीन की सहमति पर विश्वास कर सकता है? क्या चीन की पिछली हरकतें भरोसा करने लायक आधार देती है? शायद नहीं यही वजह है कि भारत को इस समझौते के बावजूद पल पल जागरूक रहना होगा। प्रधानमंत्री मोदी की ब्रिक्स समिट में शिरकत से पहले भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति एक बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है, क्योंकि पिछले करीब साढ़े चार सालों से पूर्वी लद्दाख में सीमा पर दोनों देशों के बीच तनाव का माहौल बना हुआ था। दोनों देशों के बीच सीमा पर शांति और यथास्थिति बनाए रखने को लेकर इन सालों में कई दौर की सैन्य अधिकारियों की बैठकें हो चुकी है, लेकिन चीन के अड़ियल और धूर्ततापूर्ण रवैये के कारण बात नहीं बन पा रही थी। अभी यह अच्छी बात है कि पूर्वी लद्दाख में 52 महीनों से चल रहा सीमा तनाव फिलहाल सुलझ गया है। 

दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर चली कवायद के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त और सैन्य तनाव घटाने पर सहमति बन गई है। विदेश सचिव  द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार दोनों ही देश 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुई घटनाओं के बाद से सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर लगातार संपर्क में थे। डब्ल्यूएमसीसी और सैन्य कमांडर स्तर पर दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत हुई है। आखिरकार वार्ता की इन कवायदों के कारण कई मोर्चों पर टकराव और तनाव मिटाने में कामयाबी मिली है। हालांकि अभी भी असहमति के कुछ बिंदु बाकी हैं। देखा जाए तो चीन से सीमा विवाद पर यह सहमति पीएम मोदी की ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए रूस के शहर कजान के दौरे से एक दिन पहले आई है। इससे यह उम्मीद थोड़ी पक्की होती दिख रही है कि रूस के कजान शहर में मोदी जिनपिंग की मुलाकात सम्मेलन के इतर भी हो सकती है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि एलएसी पर गश्त को लेकर समझौते पर पहुंचना एक बड़ी कामयाबी है क्योंकि भारत और चीन के बीच 2020 से शुरू हुआ सीमा विवाद बेहद भयंकर रूप ले चुका है।

ताजा समझौते से इससे सीमा पर तैनात सेनाओं की वापसी हो सकती है और तनाव कम हो सकता है। इस समझौते को क्षेत्र में शांति बहाली की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे दोनों देशों के बीच रिश्तों में जारी खटास कम हुई है, इसलिए मोदी और जिनपिंग के बीच मुलाकात की संभावना बनती दिख रही है। हालांकि बैठक को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन माना जा रहा है कि दोनों नेता नई व्यवस्था और सीमा विवाद को सुलझाने के अन्य राजनयिक प्रयासों पर चर्चा कर सकते हैं। भारत-चीन सीमा विवाद मई 2020 में चरम पर पहुंच गया था, जब एलएसी पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें हुई थीं। जून 2020 में गलवान घाटी में सबसे गंभीर टकराव हुआ था। इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक और 40 से अधिक चीनी सैनिक मारे गए थे या गंभीर रूप से घायल हो गए थे। लद्दाख के पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में हुई यह घटना, दो परमाणु हथियारों से लैस देशों के बीच सबसे गंभीर सैन्य टकराव थी। तब से, दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं। हालांकि, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने अपने सैनिकों के बारे में कभी आधिकारिक आंकड़े नहीं जारी किए। 

गलवान झड़प ने दोनों देशों को एक बड़े सैन्य संघर्ष के कगार पर धकेल दिया था। गतिरोध ने न केवल उनके राजनयिक संबंधों को बल्कि आर्थिक संबंधों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। इसके बाद से भारत ने चीनी निवेशों की जांच कड़ी कर दी है और चीनी फर्मों से जुड़ी कई बड़ी परियोजनाओं को रोक दिया है। दूसरी तरफ चीन की तरफ से भी अरुणाचल को लेकर हमेशा विवादास्पद बयान दिए जाते हैं। इसके साथ ही सीमा पर गांव बसाने को लेकर तमाम ऐसी गतिविधियां चीन के तरफ से की गई है, जिसके कारण दोनों देशों के रिश्तों में खटास आयी है। इस सीमा संघर्ष ने राजनयिक संबंधों को बुरी तरह प्रभावित किया। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर समझौतों का उल्लंघन करने और स्थिति को भड़काने का आरोप लगाया। दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को भी झटका लगा। भारत ने चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता को कम करने के लिए कदम उठाए। संघर्ष के बाद चीनी निवेश पर जांच कड़ी कर दी गई और कई चीनी मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि बीच-बीच में दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच बैठकों का सिलसिला चलता रहा और कई मुद्दों पर सहमति भी बनी, लेकिन सीमा पर तनाव कायम था, क्योंकि दोनों ही देशों के सैनिक पूर्वी लद्दाख में तैनात थे। 

ऐसे में एलएसी पर शांति और सामान्य स्थिति की बहाली को व्यापक द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर बनाने के लिए एक शर्त के रूप में देखा जाता है। भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय के लिए कार्य तंत्र की रिपोर्टों के अनुसार, दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए हैं कि संबंधों को सामान्य करने के लिए एलएसी का सम्मान और शांति की बहाली जरूरी है। तथ्य यह है कि दोनों देशों ने धीमी प्रगति के बावजूद राजनयिक संवाद जारी रखा है, यह एक सकारात्मक संकेत है कि दोनों सीमा विवाद का दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इससे अच्छी बात हो हो नहीं सकती है कि भारत और चीन के बीच सीमा पर शांति कायम रहे, क्योंकि पड़ोसी कभी भी बदले नहीं जा सकते हैं। हालांकि भारत और चीन के बीच जब भी रिश्ते खराब हुए हैं, तो इसका कारण चीन की विस्तारवादी नीति और धूर्ततापूर्ण रवैया रहा है। पाकिस्तान से मिलकर वह हमेशा ही भारत के विरोध में साजिश रचने की कोशिश करता है। इसलिए ताजा समझौता एक सकारात्मक कदम तो है, लेकिन इसे जमीन पर लागू करने में काफी सावधानी बरतनी होगी। यह सुनिश्चित करने में दोनों पक्षों के सैन्य कमांडर महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे कि वापसी सुचारू रूप से हो और तनाव फिर से न भड़के। अगर सही मायने में चीन को भारत के साथ रिश्तों में सुधार लाना है, तो उसको अपनी कुटिलतापूर्ण नीति में परिवर्तन लाना होगा। केवल दिखावे के लिए अथवा कूटनीतिक स्तर पर समन्वय का आदर्श पेश करने के बजाय जब तक वह व्यावहारिक धरातल पर भारत के मामले में विस्तारवादी नीतियों का त्याग नहीं करेगा, इसके सकारात्मक नतीजे निकलने मुश्किल बने रहेंगे। जरूरत है कि इसके लिए चीन अपनी विस्तारवादी नीति में परिवर्तन लाए। लेकिन इन सबके बावजूद एलएसी पर समझौते से दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की एक राह जरूर खुली है। अब यह देखना भी दिलचस्प होगा कि चीन अपनी वचनबद्धता पर कितना खरा उतरता है? (विभूति फीचर्स)
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