»गुलाबचन्द कोटड़िया
Truthfulness In Politics : हमारे देश में विधायिका,कार्यपालिका, न्यायपालिका, सेना,सरकारी विभागों सहित अस्पतालों में भी पूर्ण ईमानदारी व प्रतिबद्घता की शपथ दिलाई जाती है। न्यायालयों में कटघरे में खड़े होकर बयान देने वाले हर गवाह से उसके धार्मिक ग्रन्थ पर हाथ रखवाकर शपथ दिलाई जाती है तो राजनीति में भी हर एक चुनाव जीतने वाले को सत्य और निष्ठा की शपथ लेना पड़ती है।
प्रश्न यह है कि क्या लोग ऐसी शपथ लेकर सच बोलते हैं और सत्य का पालन करते हैं? जब शपथ को हम नहीं निभाते हैं तो उसका कितना औचित्य है यह एक विचारणीय विषय हो गया है। क्योंकि अगर इस शपथ का पालन होता तो देश में इतना भ्रष्टाचार कभी नहीं फैल पाता।
न्यायालय में भी पुलिस के समक्ष दिए गए बयानों से मुकर जाना एक आम बात है। हत्या व संगीन अपराधों मेें भी गवाह बार-बार बयान बदलते हैं। गवाह कह देते हैं कि पुलिस ने डरा धमकाकर उससे दस्तखत करवा दिए। इस तरह से अपराधी गुनाह करके साफ बच निकलते हैं। पैसा व प्रभाव दोनों इसमेें काम करते हैं।
इतना सब होते हुए भी हम अपने धर्म, पूजन, वंदन, तीर्थयात्रा, सूर्य आराधना व सांध्य वंदन करते हैं वह भी अटूट आस्था व श्रद्घा के साथ। धर्मगुरूओं का प्रवचन सुनते हैं ताकि हमारे मन का कलुष व पाप धुल जाये। सब जानते बूझते हुए भी असत्य बोलने में कोई हिचकता नहीं है। अगर झूठ से स्वार्थ सधता है जो हम खुश होते हैं कि चलो छका दिया और मन में गौरव अनुभव करते हैं पर मन से चोरी छिपी नहीं रहती।
शपथ के लिए और भी कई शब्द हैं- सौगंध, कसम, कौल व प्रतिज्ञा वगैरह। प्राचीन संदर्भों मेें प्रतिज्ञा शब्द अधिक प्रचलित है। प्रतिज्ञा शब्द का बखान हमें ग्रन्थों में खूब मिलता है। शपथ शब्द जुबान पर ज्यादा चढ़ता नहीं है। प्रतिज्ञा का महत्व इसी से जाना जा सकता है कि यह हमारी संस्कृति का आधार मानी जाती है। पूरे विश्व में भारतीय प्रतिज्ञाओं के प्रति आदरसूचक भावनाएं होती हैं। प्रतिज्ञाओं की बात आती है तो सर्वाधिक भीष्म प्रतिज्ञा शब्द हमारे मस्तिष्क में आता है।
भीष्म ने अपने पिता के वचन को प्रतिष्ठित करने की प्रतिज्ञा की थी कि वे आजन्म ब्रह्मचारी रहेंगे व सिंहासन पर अपना अधिकार नहीं जताएंगे। सौतेली मां सत्यवती के पुत्रों को ही उस पर बिठायेंगे और यह उन्होंने किया भी। निषाद कन्या ने उनके पिता से वचन ले लिया था। उसी तरह राम ने पिता का वचन झूठा न जाए इसलिए 14 वर्ष वनगमन स्वेच्छा से स्वीकार कर लिया था।
यह हमारी प्राचीन संस्कृति की विरासत है कि प्रतिज्ञा की है तो निभायें। रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई। हम वचन देते हैं तो हमारा कर्तव्य बन जाता है कि उसका पालन करें वरना हम अविश्वास के पात्र बन जायेेंगे, कोई हमारा भरोसा क्यों करेगा?
भारत में न्याय प्रक्रिया बहुत दुरूह जटिल व ढीली-ढाली है। कोई भी केस शीघ्र नहीं निपटता। कई केसों में वर्षों लग जाते हैं अगर चालाक वादी या प्रतिवादी हो तो वह आजीवन लड़ सकता है और उस समय के दौरान उसकी आयु क्षय हो जाती है तो उसके बच्चे वही काम संभाल लेते हैं। ऐसे केसों में शपथ का मूल्य ही क्या है?
भारत में शपथ या प्रतिज्ञा जो उच्च शास्त्रीय शब्द हो गया है का भले ही विधि सम्पन्न होते हुए भी हम निरादर करते हों परंतु पश्चिमी देशों में धर्मग्रन्थों पर हाथ रखकर अगर शपथ लेते हैं तो वे सत्य कथन ही करते हैं। यह नैतिक बल उनमें है कि गलती कर दी है, पकड़ ली गई है तो मान लेते हैं। भारत मेें तो कोई मानता ही नहीं है जब तक सरकार सुबूतों के द्वारा सिद्घ न कर दे, फिर भी उससे इंकार ही करते रहेंगे।
बिल क्लिंटन पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ने बाइबल पर हाथ रखकर झूठ बोला तो उन्हें पूरे राष्ट्र से क्षमा मांगनी पड़ी। इंग्लैंड के प्रसिद्घ साहित्यकार जेफ्री आर्थर भी अगर धर्मग्रन्थ पर हाथ रखकर झूठ बोलता है तो जनता का धिक्कार ही पाता है। आर्थर को झूठी शपथ के अपराध में 4 साल की कैद भुगतनी पड़ी थी। कई मंत्रियों व उच्च पद पर आसीन महानुभावों को अपमान सहन करना पड़ा है।
भारत में शपथ शब्द के प्रति प्रतिबद्घता नहीं दिखती। बात-बात पर बोलचाल मेें सौगंध खाने लगते हैं। असत्य बोलना जैसे आम बात हो गई है। सरकारी कामों व कार्यालयों में झूठ का चक्कर ही चलता है। झूठ के आधार पर नैतिक इमारत खड़ी नहीं रह सकती। जब तक चले चला लो पकड़े जायेंगे, तब देख लेंगे। शपथ खाने में दो होंठ ही इकट्ठे करने पड़ते हैं।
हमारा जाता क्या है? हर वर्ष शपथ लेकर उच्च पद पर विराजे लोगों के नये-नये कांड व घोटाले उजागर होते हैं। करोड़ों रूपये जनता के डकार लिए जाते हैं फिर भी न्यायालय मेें कोई नहीं मानता व स्वयं को निरपराधी सिद्घ करने में ही लगे रहते हैं। शपथ शब्द उनके लिए मजाक बनकर रह गया है।
रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है कि प्रतिज्ञा का हमें पालन करना चाहिए। भागवत में कहा है जो व्यक्ति अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं करता वह असभ्य है। नीति शतक में भतृहरि ने कहा-सत्यव्रत का पालन करने वाला तेजस्वी पुरूष सुखपूर्वक प्राण त्याग कर देता है पर अपनी प्रतिज्ञा को नहीं छोड़ता। दिया गया वचन प्रतिज्ञा के समान होता है। लाखों करोड़ों का सौदा जुबानों पर होता है अगर मुकर जायें तो विश्सनीयता बचेगी ही कहां? वचन भुलाने वाला व्यक्ति अधम माना जाता है उसके लिए सभ्यता संस्कृति धर्म एवं कर्म सब फालतू है।
महात्मा गांधी सत्य प्रतिज्ञ थे। उन्होंने कहा है- प्रतिज्ञा विहीन जीवन ईंट के बिना घर जैसा है। सारा संसार ही सत्य व प्रतिज्ञा पर टिका है। प्रतिज्ञा न लेने का अर्थ होगा अनिश्चितता व डांवाडोल स्थिति। नियम व कानून का पालन करने में हमें सदा मजबूत रहना चाहिए। हमें शपथ व प्रतिज्ञा पर विश्वास होना चाहिए। यह कार्य सुदृढ़ चरित्रवाला समर्थ पुरूष ही कर सकता है उसे सब इज्जत देते हैं। प्रतिज्ञा का पालन करना शक्तिवानों का गुण ही माना जाता है। ( विनायक फीचर्स)