दो दिवसीय मेला सह छऊ नृत्य कार्यक्रम का भव्य समापन, सांसद जोबा माझी ने की शिरकत
Chakradharpur cultural event (प्रकाश कुमार गुप्ता) : आस्था, संस्कृति और परंपरा के अद्वितीय संगम का गवाह बना चक्रधरपुर प्रखंड के केनके पंचायत अंतर्गत सरजोमहातू गांव, जहां दो दिवसीय शिव मां पाउड़ी पूजा मेला सह छऊ नृत्य कार्यक्रम का भव्य आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में आदिवासी संस्कृति की झलक, धार्मिक आस्था की गहराई और लोक कलाओं की जीवंत प्रस्तुति देखने को मिली। शनिवार को इस आयोजन का समापन हुआ, जिसमें चाईबासा की सांसद जोबा माझी बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहीं।
अंगारों पर आस्था की अग्निपरीक्षा
कार्यक्रम का सबसे विशेष आकर्षण वह दृश्य रहा जब पुरुष भक्तों ने नंगे पांव जलते अंगारों पर चलकर अपनी भक्ति का परिचय दिया। यह दृश्य केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था की चरम अभिव्यक्ति थी। भक्त भक्ति में झूम रहे थे और वातावरण मंत्रोच्चार, ढोल-नगाड़ों और भक्ति गीतों से गूंज रहा था।

सांसद ने किया मेले का भ्रमण, जताई संस्कृति संरक्षण की आवश्यकता
समापन समारोह में पहुंचीं सांसद जोबा माझी ने मेले का भ्रमण किया और ग्रामीणों से मुलाकात कर उनकी समस्याएं और सुझाव सुने। अपने संबोधन में उन्होंने सरजोमहातू मेले को क्षेत्र की आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा, “यह मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का उत्सव है। छऊ नृत्य हमारी आदिवासी परंपरा की अनमोल धरोहर है, जिसे संरक्षित और बढ़ावा देना हम सबकी जिम्मेदारी है।”
रात्रि भर छऊ नृत्य ने बांधा समां
कार्यक्रम की पूर्व संध्या यानी शुक्रवार की रात छऊ नृत्य की रंगारंग प्रस्तुति हुई, जिसे देखने के लिए सैकड़ों ग्रामीण जमा हुए थे। नकाबधारी नर्तकों ने पारंपरिक वेशभूषा में रामायण, महाभारत, लोक कथाओं और सामाजिक संदेशों पर आधारित छऊ नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी।
मेले में उमड़ी भीड़, बच्चों और महिलाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बने झूले व दुकानें
मेले में पारंपरिक व्यंजनों, खिलौनों, हस्तशिल्प और घरेलू उपयोग की वस्तुओं की कई दुकानें सजी थीं। बच्चों के लिए झूले और खेलों की व्यवस्था की गई थी, जिससे पूरा मेला एक जीवंत उत्सव में तब्दील हो गया।
इस आयोजन में केनके पंचायत के मुखिया श्याम सिंह मुंडा, झामुमो नेता रामलाल मुंडा, सामाजिक कार्यकर्ता रोनित महतो, श्रीराम सामड, धनेश्वर सामड, लाडू हेम्ब्रम, दामोदर हेम्ब्रम, गोमा हेम्ब्रम, गोमिया हेम्ब्रम, सोंगा सामड, सोमनाथ हेम्ब्रम समेत बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने सहभागिता निभाई।
सरजोमहातू मेला न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह जनजातीय समाज की सांस्कृतिक एकता, आध्यात्मिक आस्था और सामुदायिक समरसता का प्रतीक बन चुका है। ऐसे आयोजन ग्रामीण समाज को अपनी जड़ों से जोड़ने का काम करते हैं और भावी पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराते हैं।