Jharkhand के ‘गुरुजी’ नहीं रहे — पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 वर्ष की उम्र में निधन
हेमंत सोरेन बोले: “आज मैं शून्य हो गया…”
Ranchi। Jharkhand की राजनीति के भीष्म पितामह और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक नेता शिबू सोरेन का रविवार, 4 अगस्त 2025 को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। वे 81 वर्ष के थे।
पिछले डेढ़ महीने से उनका दिल्ली में इलाज चल रहा था। वे किडनी की पुरानी बीमारी, हृदय संबंधी समस्याओं, डायबिटीज और हालिया ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित थे। उनकी हालत अगस्त की शुरुआत में फिर बिगड़ गई और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। आज सुबह 8:48 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
नेमरा में होगा अंतिम संस्कार, झारखंड में सात दिन का राजकीय शोक
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पिता के निधन की जानकारी देते हुए गहरे दुख में कहा,
“आज मैं खाली हाथ हूँ… आज मैं शून्य हो गया हूँ। गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए।”
सरकार ने 7 दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। सरकारी दफ्तरों और स्कूलों में तिरंगा आधा झुका रहेगा और कोई सरकारी आयोजन नहीं होगा।
गुरुजी का पार्थिव शरीर आज शाम रांची लाया जाएगा। कल विधानसभा परिसर में आम जनता के अंतिम दर्शन हेतु रखा जाएगा। इसके बाद मंगलवार शाम उनका अंतिम संस्कार रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में किया जाएगा, जो उनका पैतृक गांव और जन्मस्थल है।
देशभर में शोक की लहर, राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री ने जताया दुख
शिबू सोरेन के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित देशभर के नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया है।
झारखंड की राजनीति का ‘दिशोम गुरु’
11 जनवरी 1944 को हजारीबाग जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन को झारखंड की राजनीति में ‘गुरुजी’ या ‘दिशोम गुरु’ कहा जाता था।
उन्होंने 1970 के दशक में आदिवासियों को महाजनों के शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष शुरू किया था। अपने पिता सोबरन मांझी की हत्या ने उन्हें सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन की राह पर ला खड़ा किया।
1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की और अलग झारखंड राज्य की मांग को लेकर लंबे संघर्ष का नेतृत्व किया। आखिरकार, 15 नवंबर 2000 को झारखंड बिहार से अलग हुआ।
तीन बार मुख्यमंत्री, आठ बार सांसद
शिबू सोरेन ने दुमका से 8 बार लोकसभा और 3 बार राज्यसभा में प्रतिनिधित्व किया। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे और केंद्र में कोयला मंत्री भी बने।
हालांकि उनके राजनीतिक जीवन में झारखंड आंदोलन, सामाजिक न्याय के संघर्ष और आदिवासी अधिकारों की लड़ाई जितनी गूंज थी, उतने ही कुछ विवाद भी उनसे जुड़े रहे। बावजूद इसके, उनकी छवि एक आदिवासी समाज के मजबूत प्रतिनिधि और जननेता की रही।
युग का अंत
शिबू सोरेन का निधन केवल एक व्यक्ति का जाना नहीं, बल्कि झारखंड की राजनीति में एक युग का अंत है। उनके संघर्षों, विचारों और योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
श्रद्धांजलि!
झारखंड के ‘गुरुजी’ को शत-शत नमन
आपकी लड़ाइयाँ आने वाली पीढ़ियों को राह दिखाएंगी।