Ranchi : World आदिवासी दिवस 2025: एक उत्सव नहीं, संकल्प है सांस्कृतिक संरक्षण और अधिकारों की बहाली का
✍️ लेखक: विजय शंकर नायक, केंद्रीय उपाध्यक्ष, आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच
Ranchi – हर वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाने वाला विश्व आदिवासी दिवस केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक वैश्विक मंच है जो आदिवासी समुदायों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, पर्यावरणीय योगदान और उनके सामने आने वाली जटिल चुनौतियों को उजागर करता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1994 में घोषित यह दिवस अब जागरूकता, संरक्षण और न्याय की मांग का प्रतीक बन चुका है।
🌿 प्रकृति के सच्चे संरक्षक हैं आदिवासी समुदाय
आदिवासी समुदायों की जीवन शैली, उनकी परंपराएं और पारंपरिक ज्ञान पर्यावरणीय संरक्षण में अद्वितीय भूमिका निभाते हैं। भारत के गोंड, भील, संथाल, डोंगरिया कोंध जैसी जनजातियों की टिकाऊ खेती और वन प्रबंधन की पद्धतियां आज भी जलवायु संकट के समाधान में मॉडल मानी जाती हैं।
📊 संख्या में तथ्य:
विश्व के 80% जैव विविधता वाले क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय रहते हैं (UNEP, 2024)
आदिवासी क्षेत्रों में वनों की कटाई की दर गैर-आदिवासी क्षेत्रों की तुलना में 25% कम है (भारत वन विभाग, 2022)
🎨 सांस्कृतिक धरोहर: विलुप्त होने के कगार पर भाषाएं और परंपराएं
भारत में 700 से अधिक आदिवासी समुदायों की 100 से ज्यादा भाषाएं संकट में हैं।
यूनेस्को की रिपोर्ट (2023) के अनुसार, विश्व की लगभग 50% भाषाएं आदिवासी मूल की हैं, जिनमें से आधे से अधिक 21वीं सदी के अंत तक लुप्त हो सकती हैं।
🎙️ महत्वपूर्ण पहल:
गैर-सरकारी संगठन “भाषा” ने 300 से अधिक भाषाओं के डिजिटल संरक्षण की दिशा में कार्य प्रारंभ किया है।
⚠️ विस्थापन और हाशियाकरण: मौन पीड़ा का गंभीर पक्ष
भूमि अधिग्रहण, खनन, और औद्योगिक परियोजनाओं ने आदिवासी समुदायों को बड़े पैमाने पर विस्थापित किया है।
भारत में 20 वर्षों में 50 लाख से अधिक आदिवासी विस्थापित हुए हैं, जबकि उन्हें न मुआवजा मिला, न पुनर्वास।
🧠 WHO (2024) की रिपोर्ट:
विस्थापित आदिवासी समुदायों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सामान्य आबादी से 2.5 गुना अधिक पाई गई हैं।
👩🌾 2025 की थीम: “आदिवासी महिलाओं की आवाज़”
इस वर्ष की थीम आदिवासी महिलाओं के नेतृत्व, साहस और उनकी दोहरी लड़ाई (लैंगिक और सांस्कृतिक भेदभाव) पर केंद्रित है।
ओडिशा की डोंगरिया कोंध महिलाओं और मध्यप्रदेश की गोंडी चित्रकार महिलाओं ने सांस्कृतिक संरक्षण और आर्थिक सशक्तीकरण में ऐतिहासिक योगदान दिया है।
🔎 भविष्य की राह: नीतिगत सुधार और समावेशी विकास
📝 प्रमुख सुझाव:
1. शिक्षा में समावेशन – आदिवासी इतिहास और भाषाएं स्कूलों के पाठ्यक्रम में हों
2. डिजिटल संरक्षण – लोककथाओं और मौखिक परंपराओं का डिजिटल आर्काइव
3. नीतिगत प्राथमिकता – भूमि अधिकार, मानसिक स्वास्थ्य और महिला नेतृत्व पर केंद्रित कानून
4. आर्थिक मंच – ई-कॉमर्स के माध्यम से पारंपरिक उत्पादों को वैश्विक बाजार से जोड़ना
🕊️ निष्कर्ष: एक न्यायपूर्ण और टिकाऊ भविष्य की ओर
विश्व आदिवासी दिवस 2025 न केवल जश्न है, बल्कि यह एक संकल्प है — आदिवासियों की आवाज बुलंद करने, अधिकार बहाल करने और उनकी संस्कृति को संरक्षित करने का। यह दिन हमें याद दिलाता है कि समावेशी और न्यायपूर्ण विकास तभी संभव है जब प्रकृति के इन सच्चे संरक्षकों की भूमिका को पूरी गरिमा और अधिकार के साथ स्वीकारा जाए।
📣 लेखक का संदेश:
“हम आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों, संस्कृति और पर्यावरणीय योगदान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस विश्व आदिवासी दिवस पर, आइए हम सब मिलकर उनकी आवाज़ को वैश्विक मंच पर बुलंद करें।”
— विजय शंकर नायक, केंद्रीय उपाध्यक्ष ,आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच