समाज की नवचेतना और नवजागरण के साथ साहित्यिक विचारधाराओं के धनी- सुनील कुमार दे
» उज्वल कुमार मंडल
Writer Sunil Kumar Dey : मेरे सबसे प्रिय साहित्यकार, कवि व लेखक माननीय सुनील कुमार दे हैं। सुनील कुमार दे बंगला के अलावे हिंदी के अद्भुत समालोचक, उच्च कोटि के लेखक तथा सहृदय एवं भावुक कवि के साथ-साथ समाजसेवक हैं। इनमें मौलिक विवेचना शक्ति, छोटे लेखकों के मनोभावों का सूक्ष्म निरीक्षण तथा गुण दोष के मूल्यांकन की अपूर्व क्षमता है। उनकी अपार विद्दता और चमत्कारात्मक आध्यात्मिकता के सामने मस्तक स्वत: ही झुक जाता है।
पोटका ही नहीं पूरे झारखंड में समाज की नवचेतना और नवजागरण के साथ साहित्यिक विचारधाराओं के विजारोपण में वे बहुत बड़ा योगदान दे रहें हैं। एक साहित्यकार का कर्तव्य होता है कि वह जैसा देखता है वैसा लिखता है मनुष्य को वास्तविक जगत से दूर कल्पना के संसार में ले जाकर खड़ा कर देने से मनुष्य का कल्याण नहीं हो सकता अतः बिगत 45 वर्षों से सुनील बाबू हर वक्त वास्तविकता को ही आधार मानकर साहित्यिक विकास को बढ़ावाने में लगे हैं।
इनका जन्म 19 जनवरी 1959 को झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिला के अंतर्गत, पोटका प्रखंड के नुआग्राम में हुआ है।उनकी पिता स्वर्गीय मोहिनी मोहन दे और माता स्वर्गीय बेला रानी दे है।उनकी शैक्षणिक योग्यता सिर्फ इंटरमीडिएट है।श्री दे काफी गरीब परिवार के ब्यक्ति है जिसके कारण वे उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके।
श्री दे 1971 साल से साहित्य सेवा कर रहे है।वे बंगला और हिंदी के साहित्यकार है।वे कविता, कहानी,नाटक,संगीत,लेख आदि लिखते है। उनकी अभी तक बंगला में 26 और हिंदी में 8 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।वे लिखनी के माध्यम से जन जागरण, समाज निर्माण,अंधविश्वास, कुप्रथा दुरिकरण, देशभक्ति और भगवत भक्ति जगाने का काम करते है।सद्य प्रकाशित उनकी तीन धार्मिक और इतिहासिक पुस्तकें यथा,, कापड़ गादी घाटेर रुंकिनी माँ, युग पुरुष विनय दास बाबाजी और महातीर्थ मुक्तेस्वर धाम काफी लोकप्रिय हुई है।सुनील जी बिगत एक साल से बांग्ला भाषा की प्रचार प्रसार में भी काफी अच्छा काम कर रहे हैं।माताजी आश्रम के सहयोग से गांव गांव में अपुर पाठशाला नाम से निःशुल्क बंगला शिखाने का स्कूल खुल रहे हैं।सुनील कुमार दे स्वामी विवेकानंद और नेताजी सुभाषचंद्र बोस के परम भक्त हैं।उन महापुरुषों का आदर्श और जीवनी को खासकर युवाओं के अंदर प्रचार प्रसार के लिए निरंतर प्रयास रत है।सुनील जी नैतिक शिक्षा और चरित्र निर्माण पर बल देते हैं और काम करते हैं।
श्री दे एक संस्कृति प्रेमी भी है।2004 से झारखंड साहित्य संस्कृति परिसद के माध्यम से साहित्य और संस्कृति का प्रचार प्रसार और विकास का काम भी किया है।वे बहुभाषी साहित्यिक पत्रिका,,झारखंड प्रभा,,का संपादक भी रहे है।
श्री दे एक समाजसेवी भी है।1981 से 1990 तक नुआग्राम नव जागरण क्लब और 1991 से 2000 तक विवेकानंद युवा समिति के माध्यम से बिबिध समाज सेवा और समाज निर्माण का काम किया है।समाज सेवा के क्षेत्र में ग्रामीण इलाके में रक्तदान शिविर का शुभारंभ और प्रचार प्रसार 1997 से करते आ रहे है।गांव गांव में लोगो को जागरूक किया है।अभी तक उनके प्रेरणा से विभिन्न गांव में 45 से ऊपर रक्तदान शिविर का आयोजन हो चुका है।श्री दे को ग्रामीण इलाके के रक्तदान शिविर का जनक कहा जाता है।
श्री दे बिगत 35 बर्षो से झारखंड के धार्मिक धरोहर श्रीश्री योगेश्वरी आनंदमयी सेवा प्रतिष्ठान,माताजी आश्रम हाता को संचालन कर रहे है।माताजी आश्रम के माध्यम से छात्र छात्राओं का बौद्धिक, सांस्कृतिक और नैतिक विकाश,नारी जागरण, नारी सशक्तिकरण, विभिन्न रोजगार मुखी प्रशिक्षण, रक्तदान,अन्नबस्त्र दान,नेत्र चिकित्सा शिविर,भक्ति दान,ज्ञान दान,धार्मिक एकता और सहिष्णुता का प्रचार प्रसार आदि का काम भी निरंतर निस्वार्थ भाव से कर रहे है।श्री दे 1981 साल से दूरसंचार विभाग में कार्यरत थे 31 जनवरी 2019 को सेवा से अबसर ग्रहण कर चुके है।विभाग का एक ईमानदार,कर्तब्य निष्ठ,समर्पित और परिश्रमी कर्मचारी के रूप में जाने जाते थे।विभाग में उत्कृष्ट सेवा के किया 2016 में उनको बिशिष्ट संचार सेवा पदक से सन्मानित भी किया गया है।इसके अलावे समय समय पर विभिन्न संस्थाओ ने साहित्य और समाज सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए श्री दे को सन्मानित भी किया है।उनमें से काब्य भूषण उपाधि,मानव रत्न उपाधि,ज्ञानतापस उपाधि,स्वर्णपदक,जयप्रकाश भारती सन्मान,महादेवी वर्मा पुरस्कार, माँ सारदा स्मृति सन्मान,नेताजी पुरस्कार, रवीन्द्र स्मृति पुरस्कार,विवेकानंद स्मृति पुरस्कार,राजभाषा सम्मान, आदि प्रमुख है।
जीवन और शक्ति की प्रेरणा देने वाला साहित्य ही सत्यम शिवम सुंदरम बन सकता है और लोक कल्याण कर सकता है जब साहित्यकार को उचित सम्मान मिले।
ऐसे प्रतिभाशाली,बहुमुखी प्रतिभा के धनी,महान साहित्यकार और समाजसेवी सुनील कुमार दे सचमुच राष्ट्रपति पुरस्कार और पद्मश्री पुरस्कार पाने योग्य व्यक्ति है।मैं साहित्यकार सुनील कुमार दे से काफी प्रभावित हूँ, काफी कुछ सीखा हूँ।मैं उनको मेरा साहित्यिक गुरु भी मानता हूं साथ ही उनके जीवनी के बारे में जितना जानता हूं वर्णन करने का प्रयास किया हूं। त्रुटि के लिए माफी चाहता हूं।