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Bhagalpur Ancient Vishnu Idol Discovery : बिहार के भागलपुर जिले के शाहकुंड प्रखंड में एक निजी मकान की खुदाई के दौरान एक नायाब प्राचीन मूर्ति मिली है जो दो हजार वर्ष पुरानी बतायी जा रही है। यह प्रतिमा अपनी विशिष्ट बनावट के कारण कौतुहल का विषय बनी हुई है। फिलहाल इसे भागलपुर संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है जिसे बाद में डिस्पले में रखने की बात कही जा रही है।
करीब डेढ़ फीट ऊंची यह मूर्ति अपने संशलिष्ट रुपाकार के कारण पुरातत्व विशेषज्ञों के साथ ही आम लोगों के लिये भी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। इस मूर्ति के नेत्र तीखे हैं तथा गले में रेखाएं उकेरी हुई हैं जो इसे जीवंतता प्रदान करते हैं। दोनों कानों में कुण्डल तथा विशिष्ट शैली में बने मुकुट धारण किये इस मूर्ति के सिर के पीछे बनी अर्ध गोलाकार आकृति इसे अन्य मूर्तियों की तुलना में भिन्नता प्रदान करते हैं। बाहों में बाजूबंद, दोनों हाथों में कड़े और कमर में करधनी शोभित है। विशिष्ट शैली के अधोवस्त्र से युक्त इसका दाहिना हाथ एक स्त्री आकृति के सिर पर है जबकि बायां हाथ खुदाई में खंडित हो गया है।
शाहकुंड का क्षेत्र ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र अंग जनपद का एक अभिन्न हिस्सा था जो 7 वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में गौड़ राजा शशांक (सन् 602 से 620 ई.) के अधीनस्थ था। ऐसी मान्यता है कि शशांक ने शाहकुंड की खेरी पहाड़ी पर एक किले का निर्माण कराया था। पुराविद् अजय कुमार सिन्हा के अनुसार राजा शशांक के कार्यकाल में शाहकुंड ने चरम उत्कर्ष को प्राप्त किया। उसने अंगक्षेत्र में कई ‘एकमुखी’ शिवलिंगों की स्थापना की थी,जिनके अवशेष यहां की पहाड़ी और आस-पास के क्षेत्र में आज भी देखे जा सकते हैं। शाहकुंड की खेरी पहाड़ी स्थित शिव मंदिर में करीब सवा दो फीट ऊंचा और डेढ़ फीट से अधिक व्यास वाला एक शिवलिंग स्थापित है। शिव मंदिर में एक बहुत बड़ा करीब 20 फीट व्यास वाला विशाल कुआं है जिसमें से बहुत सारी प्राचीन मूर्तियां और कई अन्य पुरातत्व सामग्रियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो खेरी पहाड़ी पर यत्र-तत्र बिखरे पड़े हुए हैं। इस कुएं से देवी पार्वती की एक प्राचीन मूर्ति भी मिली थी जिसे शिव मंदिर के सामने स्थापित कर दिया गया है। करीब छह दशक पूर्व ग्रामीणों द्वारा की गई खुदाई में उक्त प्राचीन शिवलिंग और पुराने मंदिर की दीवार, चौखट, किवाड़ आदि के अवशेष मिले थे।
भागलपुर के शाहकुंड से मिली उक्त मूर्ति की पहचान के बारे में विशेषज्ञों के बीच मतैक्य नहीं है किंतु उपलब्ध तथ्यों के अनुसार यह मूर्ति भगवान विष्णु की होने के संकेत मिलते हैं। भागलपुर के पूर्व संग्रहालय अध्यक्ष शिव कुमार मिश्र बताते हैं कि शिल्प कला के अनुसार यह एक दुर्लभ मूर्ति है जो करीब 2000 वर्ष पुरानी है जिसकी पहचान कठिन है। श्री मिश्र बताते हैं कि बिहार के नवादा में भी कुछ ऐसी ही दिखनेवाली मूर्ति मिली थी जो भगवान वासुदेव की है किंतु शाहकुंड में मिली इस प्रतिमा पर बिना सम्यक पहचान के अंतिम मुहर नहीं लगाई जा सकती है लेकिन भागलपुर के वर्तमान संग्रहालय अध्यक्ष डॉ. सुधीर कुमार यादव इस मूर्ति की पहचान भगवान वासुदेव के रूप में करते हैं और इसे सातवीं शताब्दी की बताते हैं।
अवकाश प्राप्त संग्रहालय अध्यक्ष डॉ ओ. पी. पाण्डेय जो कि एक मूर्ति विशेषज्ञ भी हैं, के अनुसार इस प्रतिमा की विशिष्ट बनावट के कारण इसकी पहचान जटिल है। शाहकुंड में समय समय पर मिल रही प्राचीन मूर्तियों और शाहकुंड पहाड़ी की तलहटी में बिखरे पड़े पुरातात्विक अवशेषों के आधार पर डॉ. पाण्डेय का अनुमान है कि प्राचीन काल में शाहकुंड में मूर्ति निर्माण का कार्य बड़े पैमाने पर होता होगा। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि इस मूर्ति का निर्माण किसी स्थानीय शिल्पी के द्वारा स्थानीय मान्यताओं के आधार पर किया गया होगा जिसके कारण इसकी पहचान निर्धारित करने में कठिनाई हो रही है। इस दिशा में गहन अध्ययन की आवश्यकता है। गत वर्ष भी शाहकुंड में एक नाले की खुदाई के दौरान भगवान शिव के स्वरूप लकुलिष की पांचवीं-छठी ई.की आदमकद मूर्ति मिली है जिसकी चर्चा पूरे देश में हुई थी।अब यह मूर्ति भागलपुर संग्रहालय में रखी गई है।
शाहकुंड में मिली इस नयी मूर्ति के बारे में सबसे सटीक टिप्पणी जाने-माने पुराविद् ए.के. महाजन के द्वारा की गयी है। श्री महाजन के अनुसार यह विष्णु की प्रतिमा लगती है जिसके नीचे का दायां हाथ एक स्त्री आकृति के सिर पर है, जो आयुध गदा का मानवीकृत रूप है। प्रारंभिक विष्णु प्रतिमाओं में गदा देवी और चक्र पुरुष की आकृति बहुतायत में मिली हैं। इस प्रकार की प्रतिमाएं ८वीं शती ई. तक बनी। शैली के आधार पर प्रतिमा की तिथि ८वीं शती ई. निर्धारित की जा सकती है।
गौरतलब है कि शाहकुंड क्षेत्र की प्रसिद्धि एक शैव केंद्र के साथ वैष्णव स्थल के रूप में भी रही है। यहां से कुछ ही दूरी पर बौंसी में पौराणिक मंदार पर्वत अवस्थित है जिसके बारे में मान्यता है कि देवासुर संग्राम के समय समुद्र मंथन में इसे मथनी के रूप में प्रयोग किया गया था। मंदार क्षेत्र की पहचान एक प्रख्यात वैष्णव केंद्र के रूप में है। ऐसी मान्यता है कि शाहकुंड की खेरी पहाड़ी ही पौराणिक शंखकूट पर्वत है जिसका उल्लेख ‘विष्णु पुराण’ में किया गया है। कहते हैं कि मंदार पर्वत क्षेत्र पर मधु असुर का राज्य था, तो शंखकूट पर्वत पर शंखासुर अथवा शंख चूड़ नामक असुर का आधिपत्य था जिसका वध भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा किया गया था। शाहकुंड की खेरी पहाड़ी के शिलाखंडों पर उत्कीर्ण प्राचीन शंख-लिपि इसके नाम को सार्थकता प्रदान करती हैं। शाहकुंड में बहुत पहले काले पत्थर से निर्मित भगवान केवल नरसिंह की आदमकद कलात्मक मूर्ति भी मिली थी जो इस स्थल के वैष्णव केंद्र होने के संकेत देती है।(लेखक पूर्व जनसंपर्क उपनिदेशक एवं इतिहासकार है)(विभूति फीचर्स)
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