नई दिल्ली – हाल ही में जारी 2024-25 की दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़ों ने भारत के सामने एक नई चिंता खड़ी कर दी है। आंकड़ों के अनुसार, भारत ‘मिडिल इनकम ट्रैप’ की ओर बढ़ रहा है। यदि यह सच साबित होता है, तो 2047 तक भारत के एक समृद्ध देश बनने की संभावना कम हो जाएगी।
यह स्थिति उन लैटिन अमेरिकी देशों जैसी है, जिन्होंने शुरुआत में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन मिडिल इनकम ट्रैप में फंसकर अमीर देशों की श्रेणी में नहीं पहुंच सके। हालांकि, भारत फिलहाल वैश्विक स्तर पर निम्न-मध्य आय वाले देशों की श्रेणी में आता है, जहां इसका प्रति व्यक्ति आय (GNI) $2,540 है।
सभी सेक्टर्स में धीमी ग्रोथ दर
2024-25 के पहले छह महीनों के आंकड़ों से स्पष्ट है कि सभी क्षेत्रों की वृद्धि दर में गिरावट आई है।
प्राइमरी सेक्टर: 3.6% से घटकर 2.8%
सेकेंडरी सेक्टर: 9.7% से 6.1%
टर्शियरी सेक्टर: 8.3% से 7.1%
हालांकि, निजी उपभोग व्यय (Private Final Consumption Expenditure) और निर्यात में तेजी आई है, लेकिन ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन (निवेश) की धीमी वृद्धि चिंता का विषय है।
चुनावी रियायतों से बढ़ी खपत
हालिया खपत वृद्धि का एक बड़ा कारण चुनावी रियायतें हैं। राजनीतिक दलों ने गरीबों के लिए अनेक घोषणाएं कीं, जिससे खपत में अस्थायी बढ़ोतरी हुई। लेकिन, इससे बजट घाटा बढ़ा है और सार्वजनिक निवेश पर असर पड़ा है।
असंगठित क्षेत्र पर आर्थिक झटकों का असर
असंगठित क्षेत्र, जो भारत की 94% श्रम शक्ति को रोजगार देता है, 2016 के विमुद्रीकरण से लेकर अब तक कई आर्थिक झटकों का सामना कर रहा है। इस क्षेत्र में आय घटने से खपत पर असर पड़ा है।
आधिकारिक आंकड़े मुख्य रूप से संगठित क्षेत्र पर आधारित हैं, जिससे GDP के आंकड़े ओवरएस्टिमेट हो रहे हैं। इस वजह से असंगठित क्षेत्र की गिरावट को नजरअंदाज किया जा रहा है।
असमानता है मुख्य समस्या
भारत के लिए असली चुनौती आय असमानता है। संगठित क्षेत्र में वृद्धि ने रोजगार के अवसर नहीं बढ़ाए, जिससे असंगठित क्षेत्र में मजदूरी पर दबाव बना हुआ है। नतीजतन, देश की बड़ी आबादी कम आय के जाल में फंसी हुई है।
‘मिडिल इनकम ट्रैप’ नहीं, बल्कि दोहरी आय जाल की चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत मिडिल इनकम ट्रैप से ज्यादा दोहरी आय जाल का सामना कर रहा है। असंगठित क्षेत्र की कम आय संगठित क्षेत्र में मांग को प्रभावित कर रही है।
निष्कर्ष
आर्थिक असमानता और असंगठित क्षेत्र की अनदेखी से भारत की विकास गति धीमी हो रही है। सुधारों के नाम पर निजी क्षेत्र को रियायतें देना तब तक कारगर नहीं होगा जब तक आम जनता की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती।
वहीं, संगठित क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के बढ़ते उपयोग से रोजगार घटने की आशंका है। इसके साथ ही बढ़ती खपत और जलवायु परिवर्तन भी भारत की विकास यात्रा को धीमा कर सकते हैं।