Jharkhand Adivasi Protest (प्रकाश कुमार गुप्ता) : झारखंड के आदिवासी समुदायों ने एक बार फिर अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए आंदोलन का बिगुल फूंक दिया है। सरना धर्म कोड की मान्यता की मांग को लेकर राज्यभर में आंदोलन तेज हो गया है। इसी क्रम में पश्चिमी सिंहभूम जिला, चाईबासा के प्रमुख आदिवासी संगठनों ने भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक संयुक्त पत्र लिखकर आग्रह किया है कि जब तक सरना धर्म कोड को आधिकारिक मान्यता नहीं दी जाती, तब तक देश में जनगणना की प्रक्रिया स्थगित रखी जाए।
पांच वर्षों से लंबित है विधेयक, बढ़ रहा है आक्रोश
ज्ञात हो कि झारखंड विधानसभा ने 11 नवंबर 2020 को एक विशेष सत्र बुलाकर सर्वसम्मति से सरना धर्म कोड विधेयक पारित किया था। यह विधेयक राज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार को भेजा गया, लेकिन आज लगभग पाँच वर्ष बीत जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है। इस विलंब ने आदिवासी समाज में गहरी नाराजगी और असंतोष को जन्म दिया है।
“हम हिंदू नहीं, प्रकृति पूजक हैं”
आदिवासी संगठनों का स्पष्ट कहना है कि सरना धर्म के अनुयायी प्रकृति पूजक होते हैं, जो पेड़, पहाड़, नदी और प्रकृति के अन्य तत्वों की उपासना करते हैं। वे स्वयं को हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं मानते और अपनी धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए एक अलग धर्म कोड की मांग कर रहे हैं। संगठनों का कहना है कि जब तक जनगणना में ‘सरना’ को एक स्वतंत्र धर्म कॉलम के रूप में मान्यता नहीं दी जाती, तब तक जातिगत जनगणना का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।

राष्ट्रपति से विशेष हस्तक्षेप की मांग
राष्ट्रपति को भेजे गए ज्ञापन में सोनाराम देवगम (जिला अध्यक्ष), राहुल आदित्य (जिला सचिव), जीत भाव (जिला परिषद उपाध्यक्ष), रामलाल मुंडा (केन्द्रीय सदस्य) और लानेमी सुरेन (जिला परिषद अध्यक्ष) सहित कई अन्य प्रमुख आदिवासी नेताओं के हस्ताक्षर हैं। इन नेताओं ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि वे आदिवासी अस्मिता की रक्षा के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दें कि जब तक सरना धर्म कोड को मान्यता नहीं दी जाती, तब तक जनगणना को स्थगित रखा जाए।
धरना प्रदर्शन और संघर्ष की चेतावनी
सरना धर्म कोड की मांग को लेकर झामुमो द्वारा चाईबासा में एक विशाल धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इस मौके पर झारखंड सरकार में मंत्री दीपक बिरुवा ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि, “देश में जिन समुदायों की जनसंख्या कम है, उन्हें भी धर्म कोड मिला है। लेकिन करोड़ों की संख्या में मौजूद आदिवासी समुदाय को आज तक उसका धर्म कोड नहीं मिला। यह हमारे हक, पहचान और संस्कृति पर हमला है।”
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि केंद्र सरकार ने सरना धर्म कोड की मांग को नजरअंदाज किया, तो झामुमो सड़क से लेकर संसद तक आंदोलन करेगा। चाईबासा में आयोजित इस धरना प्रदर्शन में सांसद जोबा माझी, विधायक जगत माझी, जिला प्रवक्ता बुधराम लागुरी, इक़बाल अहमद, बंधना उरांव, मंगल तुबिद सहित अनेक नेता व कार्यकर्ता शामिल हुए।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भूमिका
धरना में नेताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने आदिवासियों के अलग धर्म कोड की मांग को लेकर राज्य सरकार से अनुशंसा कर केंद्र सरकार को विधिवत प्रस्ताव भेजा है। अब यह केंद्र सरकार और महामहिम राष्ट्रपति के हाथ में है कि वे आदिवासी समाज को उसका अधिकार प्रदान करें। नेताओं ने दोहराया कि जब तक सरना धर्म कोड लागू नहीं हो जाता, आंदोलन जारी रहेगा।
सदन में विशेष सत्र बुलाने की मांग
सांसद जोबा माझी और विधायक जगत माझी ने केंद्र सरकार से लोकसभा में विशेष सत्र बुलाकर सरना धर्म कोड पर चर्चा करने और विधेयक पारित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह केवल एक धार्मिक मांग नहीं है, बल्कि यह आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, परंपरा और पहचान की रक्षा का प्रश्न है।
निष्कर्ष
आदिवासी संगठनों का आंदोलन अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। जनगणना प्रक्रिया की शुरुआत से पहले सरना धर्म कोड को मान्यता देने की यह मांग केवल झारखंड ही नहीं, बल्कि देशभर के आदिवासी समुदायों के बीच गूंज रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस जनआंदोलन का क्या जवाब देती है—क्या वह सरना धर्म कोड की मांग मानती है, या फिर यह मुद्दा आने वाले समय में और व्यापक आंदोलन का रूप लेता है।