(ब्रह्मर्षि वैद्य पं. नारायण शर्मा कौशिक, विनायक फीचर्स)
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, व्यक्ति के चरित्र, स्वभाव और भाग्य की सूक्ष्म जानकारी उनकी जन्म कुंडली के आधार पर ज्ञात की जा सकती है। विशेष रूप से, स्त्री के उत्तम चरित्र और भाग्य के संदर्भ में कुछ विशेष योग बताए गए हैं, जो उसके जीवन की दिशा और गुणों को दर्शाते हैं। प्रस्तुत आलेख में ज्योतिषीय सूत्रों के माध्यम से स्त्री के चरित्र संबंधी संकेत दिए गए हैं।
स्त्री के चरित्र के प्रमुख ज्योतिषीय योग:
1. सप्तम भाव में गुरु की स्थिति:
यदि गुरु सप्तम भाव में हो और शुक्र व बुध की दृष्टि हो, तो स्त्री पतिव्रता और साध्वी मानी जाती है।
2. सप्तमेश और शुक्र का संयोजन:
सप्तमेश (सप्तम भाव का स्वामी) शुक्र के साथ हो और दोनों पर गुरु की दृष्टि हो, तो स्त्री पतिव्रता होती है।
3. शुभ ग्रहों का प्रभाव:
सप्तमेश शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, तो स्त्री पति परायणा मानी जाती है।
4. गुरु की स्थिति:
यदि गुरु लग्न, तृतीय या एकादश भाव में बैठकर सप्तम भाव को देखता हो, तो स्त्री सच्चरित्र और पतिव्रता होती है।
5. चंद्रमा और शुभ ग्रह का संबंध:
चंद्रमा से सप्तम भाव में शुभ ग्रह हो तो स्त्री सच्चरित्रा और गुणवान होती है।
6. गुरु और शुक्र की युति:
गुरु और शुक्र की युति स्त्री को प्रतिभाशाली, समृद्ध और सम्मानित बनाती है।
7. विशेष योग:
गुरु के केंद्र में चंद्रमा और शुक्र की स्थिति हो तो ऐसी स्त्री निर्धन घर में जन्म लेकर भी रानी तुल्य सुख प्राप्त करती है।
भाग्य और जीवन पर प्रभाव:
ज्योतिषीय गणना के अनुसार, गुरु, शुक्र और अन्य शुभ ग्रहों का प्रभाव स्त्री के जीवन में समृद्धि, गुण, और सामाजिक प्रतिष्ठा को बढ़ाता है। उच्च गुरु या शुभ ग्रहों की युति उसे धनी, बुद्धिमान और सम्मानित बनाती है।
कलात्मक और आकर्षक व्यक्तित्व:
यदि लग्न में बुध और शुक्र हो, तो ऐसी स्त्री आकर्षक, कलाविज्ञ और पतिप्रिया मानी जाती है। चंद्र, बुध और गुरु की युति से स्त्री अपने परिवार का भाग्योदय करती है और सुख-समृद्धि लाती है।
ज्योतिषीय ज्ञान के आधार पर, ये योग न केवल स्त्री के चरित्र और स्वभाव को स्पष्ट करते हैं, बल्कि उनके भाग्य और जीवन की दिशा भी तय करते हैं। ज्योतिष शास्त्र का यह पहलू सूक्ष्म अध्ययन और अनुभव के साथ ही सही तरीके से समझा जा सकता है।