Lyricist Nawab Arzoo Bollywood Journey : चाईबासा (झारखंड) की धरती से जुड़े गीतकार, पटकथा व संवाद लेखक नवाब आरजू इन दिनों चर्चित फिल्म मेकर जवाहर लाल बाफना की नवीनतम फिल्म ‘दिल के आस पास’ को लेकर बॉलीवुड में चर्चा का विषय बने हुए हैं। जवाहर लाल बाफना के द्वारा निर्मित ‘भाभी’, ‘हम सब चोर हैं’, ‘खून का सिंदूर’, ‘दादागिरी’ और ‘आग ही आग’ जैसी सुपर हिट फिल्मों से गीतकार, पटकथा व संवाद लेखक नवाब आरजू का जुड़ाव रहा है। झारखण्ड के शहर चाईबासा में पले बढ़े नवाब आरजू को बचपन से ही लिखने पढ़ने का शोक़ था फलस्वरूप कॉलेज के दिनों में ही इलाक़ाई पत्र पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित होने लगी साथ ही साथ मुशायरों में भी अपना कलाम सुना कर स्थानीय शायरों के बीच वो अपनी पहचान कायम करने में कामयाब रहे। स्थानीय स्तर पर मिल रही वाह वाही से प्रभावित हो कर नवाब आरजू ने फिल्म जगत में तकदीर आजमाने का निर्णय लिया। अज़्म पुख़्ता होते ही 1982 में नवाब आरजू ने बॉम्बे का रुख किया, जो आज मुम्बई कहलाता है, जहां उनका कोई अपना नहीं था और ना ही संघर्ष के दौर में उनको कोई गॉड फादर मिला। एक लम्बे संघर्ष के बाद उनके शब्दों को सराहा गया।
90 के दशक में भारतीय फिल्म जगत के मशहूर फिल्मकार महेश भट्ट की फिल्म ‘साथी’ का गीत ‘हुई आँखें नम और ये दिल मुस्कुराया, तो साथी कोई भुला याद आया….’ के हिट होने के बाद नवाब आरजू ने कभी पीछे मूड कर नहीं देखा। खास बात ये रही कि फिल्मी जद्दोजहद के साथ साथ वो अदब से भी जुड़े रहे। 2013 में हिंदी उर्दू साहित्य अवार्ड कमिटी उत्तर प्रदेश ने लखनऊ में ‘उर्दू अदब’ अवार्ड से उन्हें नवाज़ा। 2014 में नारायणी साहित्य अकादमी ने भी सम्मानित किया, फिल्म लेखन के लिए भी समय समय पर उन्हें कई अवार्ड मिले मसलन ‘इंडियन टेली अवार्ड’ और ‘इंडियन टेलीविज़न अकादमी अवार्ड’ वगैरह। फिलवक्त नवाब आरजू फिल्मों और टेलीविज़न की दुनिया में मसरूफ हैं।
‘बाज़ीगर’, ‘साथी’, ‘भाभी’, ‘दिल का क्या क़ुसुर’, ‘जान तेरे नाम’, ‘हक़ीक़त’, ‘बाली उमर को सलाम’, ‘मुक़ाबला’, ‘आ गले लग जा’, ‘मालामाल वीकली’ ‘मिस्टर बेचारा’, ‘धर्म कर्म’ और ‘आज़म’ जैसी हिट फिल्मों के लिए उनके द्वारा लिखे गए गीत बहुत पसंद किये गए। नवाब आरज़ू ने छोटे परदे पर भी बहुत उम्दा काम किया है उन्होंने ‘हिना’, ‘हवाएं’, ‘कांच के रिश्ते’, ‘कैसे कहूं’ जैसे सीरियल लिखे। ‘सास भी कभी बहु थी’, ‘कहानी हर घर की’, ‘कसौटी ज़िन्दगी की’, ‘कुसुम’, ‘कुटुंब’, ‘कसम से’, ‘कुमकुम’, ‘कोई अपना सा’, ‘बड़े अच्छे लगते हैं’, ‘ढाई किलो प्रेम के’ और ‘नागिन’ जैसी सफल टीवी शो के टाइटल ट्रैक को जनता ने काफी सराहा। यूट्यूब पर भी नवाब आरजू के कई धार्मिक भजन उपलब्ध हैं।
अपनी लेखन प्रतिभा के बदौलत बॉलीवुड में झारखंड का परचम लहराने वाले नवाब आरजू अपनी फिल्मी मसरूफ़ियत के बावजूद भी अदबी महफिलों में और मुशायरों में शरीक होते रहते हैं। नवाब आरजू का पहला ग़ज़लों और नज़मों का मजमुआ ‘एहसास’ 2014 में मंज़रे आम पर आया था। ‘सुख़न दर्पन’ उनका दूसरा मजमुआ कलाम है जो पाठकों तक 2025 में पहुंच जाएगा।
प्रस्तुति : काली दास पाण्डेय