Oraon Tribe Traditional Festival (प्रकाश कुमार गुप्ता) : होली के दूसरे दिन शनिवार को आदिवासी उरांव समाज ने अपनी पारंपरिक रीति-रिवाजों के तहत सातों अखाड़ों के घरों में मुर्गा बलि पूजा का आयोजन किया। इस दिन को लेकर गांव में विशेष धार्मिक आयोजन हुआ, जिसमें विधिपूर्वक पूजा अर्चना के बाद ढोल-नगाड़ों की ध्वनि में नाच-गान का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस आयोजन की शुरुआत चाला मंडप सरना स्थल में पाहन पुजारी और उनके सहयोगी पनभरवा द्वारा विधि-विधान से पूजा अर्चना से हुई। पूजा के बाद गांव के सभी मुहल्लों में ढोल-नगाड़ों की ध्वनि के साथ नृत्य किया गया। इस दौरान, मुहल्ले की सभी महिलाएं अपने घरों से लोटा में पानी और कटोरा में सरसों तेल लेकर आईं और पाहन तथा पनभरवा को नहलाकर उन्हें तेल लगाया। इसके साथ ही महिलाएं अन्य घरों की महिलाओं को पानी से भींगा कर आशीर्वाद देतीं, जिससे गांव के सभी घरों में सुख-शांति और समृद्धि का वास हो सके।
शाम तक, सभी महिलाएं और पुरुष नदी में स्नान करने के बाद चाला मंडप वापस आकर प्रार्थना करते हुए अपने-अपने घर लौट आए। अगले दिन रविवार और सोमवार को बान टोला अखाड़े में भी होली के अवसर पर, उरांव समाज के सातों अखाड़ों के परिवारों की सुख-समृद्धि और उनके कल्याण के लिए पूजा-पाठ किया गया। पूजा का आयोजन चाला मंडप मां सरना स्थल पर हुआ, जहां समाज के लोग एकजुट होकर अपने परिवार के कल्याण की कामना करते हैं। इस दिन, घर-घर जाकर लाल और सफेद मिट्टी से दरवाजे की दोनों ओर छापने का परंपरागत रिवाज भी निभाया गया, साथ ही तिलाई फूलों को घरों के दरवाजे में खोसने की प्रक्रिया पूरी की गई।
यह आयोजन आज भी उरांव समाज की पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ बड़े धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पारंपरिक नृत्य, गान और नारे के साथ समाज के लोग इस दिन को खास तरीके से मनाते हैं। इस अवसर पर बान टोला अखाड़ा में नाचते गाते हुए, लोग गाते थे- “ता…ना…ना…नारे…नारे…नारे हो… चिमटी उपारे हांथी चील के चेंगेना खाए…” जैसे पारंपरिक गानों की ध्वनि से पूरा वातावरण गूंज उठा।

इस शानदार आयोजन में समाज के कई प्रमुख सदस्य उपस्थित थे, जिनमें समाज के मुखिया लालू कुजूर, पाहन फागु खलखो, पनभरवा दुर्गा कुजूर, मंगरू टोप्पो, चमरू लकड़ा, राजु तिग्गा, सीताराम मुंडा, शम्भू टोप्पो, राजेंद्र कच्छप, बुधराम कोया, कलिया कुजूर, विश्वनाथ लकड़ा, आकाश टोप्पो, बंटी कच्छप, रवि कुजूर, जगरनाथ कुजूर, सूरज टोप्पो, बिशु कुजूर, सुनील खलखो, रवि तिर्की, बिरसा लकड़ा, नंदू लकड़ा, महली मिंज, कर्मा कुजूर, बंधन कुजूर, बिट्टू कच्छप, जुली कुजूर, घांसी लकड़ा, सुरज कुजूर, सावन लकड़ा, सुनील बरहा, कृष्णा टोप्पो, मंगरा तिर्की, गोपी कुजूर, छिदीया लकड़ा सहित अन्य समाजजन उपस्थित थे।
यह आयोजन उरांव समाज की सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने का प्रतीक है, जहां हर सदस्य एकजुट होकर अपने पूर्वजों की परंपराओं को जीवित रखते हुए समाज के कल्याण की कामना करता है।