» सुनील कुमार दे
Ramakrishna Paramahansa , जिन्हें आध्यात्मिकता का जीवंत अवतार माना जाता है, अपने जीवन और शिक्षाओं के माध्यम से न केवल भारतीय समाज बल्कि पूरी मानवता को धर्म सहिष्णुता, एकता और सद्भाव का संदेश दिया। उन्होंने अद्वितीय आध्यात्मिक साधनाओं द्वारा यह सिद्ध किया कि ईश्वर एक है, चाहे उसकी आराधना किसी भी रूप में की जाए।
साधारण जीवन, उच्च विचार
रामकृष्ण परमहंस साधारण व्यक्ति की तरह आचरण करते थे। उनकी अलौकिक शक्तियां होते हुए भी उन्होंने कभी चमत्कार दिखाने का प्रयास नहीं किया। ब्राह्मण कुल में जन्मे होते हुए उन्होंने जाति व्यवस्था का खंडन किया और धनी कमारिणी को अपनी भिक्षा माँ स्वीकार किया। उनका यह कदम समाज में व्याप्त जातीय भेदभाव के खिलाफ एक सशक्त संदेश था।
सर्वधर्म सम्मान और साधना का उदाहरण
रामकृष्ण परमहंस ने केवल हिंदू धर्म के विभिन्न पथों पर ही नहीं, बल्कि इस्लाम और ईसाई धर्म की साधनाओं में भी सिद्धि प्राप्त की। उन्होंने माँ काली की उपासना में अद्वितीय स्थान प्राप्त किया और निर्विकल्प समाधि द्वारा निराकार परमब्रह्म का अनुभव भी किया। उनके पास विभिन्न धर्मों और पंथों के लोग ज्ञान और भक्ति अर्जित करने के लिए आते थे। उनकी सहिष्णुता इतनी गहरी थी कि हर व्यक्ति उन्हें अपने धर्म का मानने लगता था।
नारी सम्मान के प्रतीक
रामकृष्ण परमहंस ने नारी जाति को विशेष सम्मान दिया। उन्होंने भैरवी ब्राह्मणी जैसी महिलाओं को गुरु माना, धनी कमारिणी को भिक्षा माँ बनाया और अपनी धर्मपत्नी माँ सारदा देवी को देवी के रूप में पूजा। उन्होंने नारी जागरण का नेतृत्व किया और समाज में नारी सम्मान का आदर्श स्थापित किया।
नई विचारधारा, परंतु नया धर्म नहीं
रामकृष्ण परमहंस ने कभी नया धर्म या पंथ की स्थापना नहीं की। उनका उद्देश्य मानवता को यह समझाना था कि सभी धर्म सत्य हैं और सभी का सम्मान करना चाहिए। वे कहते थे, “ईश्वर एक है, लेकिन उसके नाम और रूप अनेक हैं। जितने पंथ हैं, उतने ही रास्ते हैं।”
प्रेरणा और संदेश
रामकृष्ण परमहंस का जीवन हमें सिखाता है कि धर्म और आध्यात्मिकता का मुख्य उद्देश्य मानवता की सेवा और एकता है। उनकी शिक्षाएं हमें एक सुंदर, सहिष्णु और सद्भावपूर्ण समाज की ओर प्रेरित करती हैं। आज, उनके दिखाए मार्ग पर चलकर हम एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं।