मणिपुर भारत का सबसे खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर उत्तर पूर्वी राज्य है, जिसमें लगभग पिछले डेढ़ वर्ष से हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है । हिंसा की यह आग मई, 2023 में शुरू हुई थी, जब वहां की हाईकोर्ट ने बहुसंख्यक मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) का दर्जा देने का फैसला सुनाया था, इससे वहां के पहाड़ों में रहने वाले कुकी समुदाय के लोगों में डर पैदा हो गया कि उनकी ज़मीनें और अधिकार बड़े स्तर पर कम हो जाएंगे। उत्तर पूर्व के छोटे-छोटे राज्य अशांत रहते हैं। इन सभी राज्यों के अलगाववादी हथियारबंद होकर दशकों से यहां चुनौती पेश करते आ रहे हैं। मणिपुर में बहुसंख्यक मैतई हिन्दू समुदाय के साथ और कुकी बड़ी हद तक ईसाई समुदाय से संबंधित हैं। यहां भाजपा की सरकार है। एन. बिरेन सिंह यहां के मुख्यमंत्री हैं। 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 37 विधायक हैं, जिनमें से 7 विधायक कुकी समुदाय के साथ भी संबंध रखते हैं। डेढ़ वर्ष से यहां बनी गृह युद्ध की स्थिति में अब तक 300 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। बड़े स्तर पर घरों और जायदादों को आग लगाई जा चुकी है। यह दोनों समुदाय एक दूसरे के कट्टर विरोधी ही नहीं, बल्कि दुश्मन बने नज़र आते हैं। इसलिए अपने-अपने गांवों में इन्होंने अपने पहरे लगा रखे हैं। हथियारबंद लोग एक- दूसरे समुदाय पर हमले करते हैं।
मणिपुर एक बार फिर से हिंसा की आग में जल रहा है। यहां उग्रवादियों और सुरक्षाबलों के बीच हुई मुठभेड़ के बाद जिरीबाम में 6 लोगों के अपहरण और उनकी लाश मिलने के बाद से भीड़ हिंसक हो गई है। कई मंत्रियों के घरों पर हमले हो चुके हैं। प्रदर्शनकारियों ने सीएम के घर पर भी हमला करने की कोशिश की थी। कुकी उग्रवादियों की ओर से एक ही परिवार के 6 लोगों की नृशंस हत्या के बाद नाराज मैतेई समुदाय के लोग सड़क पर उतर आए हैं। वे लगातार हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर कुकी समुदाय 11 नवंबर की मुठभेड़ को फर्जी बता रहा है । इन लोगों का कहना है कि वह उनके शवों का अंतिम संस्कार पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट मिलने के बाद ही करेंगे। कुकी समुदाय का कहना है कि उन्हें शक है कि सुरक्षाबलों ने उन्हें पकड़कर मारा है।
ताजा जानकारी के अनुसार हथियारबंद उग्रवादियों द्वारा जिरीबाम में एक महिला की हत्या की गई। इस संबंध में 8 नवंबर को जिरीबाम स्थानीय पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। सशस्त्र उग्रवादियों ने जिरीबाम के जाकुरधोर करोंग और बोरोबेकरा पुलिस स्टेशनों पर मौजूद सीआरपीएफ चौकी पर हमला किया। इस सिलसिले में 11 नवंबर को बोरोबेकरा पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई। बोरोबेकरा में घरों को जलाने और नागरिकों की हत्या का मामला सामने आया। इस संबंध में 11 नवंबर को बोरोबेकरा पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई । 11 नवंबर को, मणिपुर पुलिस ने कहा कि बोरोबेक्रा पुलिस स्टेशन और जिरीबाम के जकुरधोर में सीआरपीएफ कैंप पर छद्म वर्दी पहने और अत्याधुनिक हथियारों से लैस उग्रवादियों द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी के बाद सुरक्षा बलों के साथ भीषण मुठभेड़ में 10 संदिग्ध उग्रवादी मारे गए। पुलिस के अनुसार, कुछ घंटों बाद संदिग्ध उग्रवादियों ने उसी जिले से महिलाओं और बच्चों सहित छह नागरिकों का कथित तौर पर अपहरण कर लिया। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि मणिपुर में तैनात सभी सुरक्षा बलों को राज्य में व्यवस्था और शांति बहाल करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया गया है।
पिछले साल मई से जातीय संघर्ष से जूझ रहे मणिपुर में महिलाओं और बच्चों के शव बरामद होने के बाद विरोध प्रदर्शन और हिंसा के कारण स्थिति अस्थिर हो गई है। गुस्साई भीड़ ने इंफाल घाटी के विभिन्न जिलों में तीन भाजपा विधायकों और एक कांग्रेस विधायक के घरों में आग लगा दी जबकि सुरक्षा बलों ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के पैतृक आवास पर धावा बोलने की प्रदर्शनकारियों की कोशिश को नाकाम कर दिया। मणिपुर में स्थिति को कंट्रोल करने के लिए केंद्र सरकार ने सीएपीएफ की 50 और कंपनियां भेजने का फैसला किया है। इस तरह अब राज्य में सीएपीएफ की 268 कंपनियां तैनात हो जाएंगी। इनमें पांच हजार जवानों की संख्या और बढ़ जाएगी। इस तरह, राज्य के हिंसा प्रभावित इलाकों में जवानों की तैनाती की संख्या 26,800 हो जाएगी। इन 50 कंपनियों में सबसे बड़ी संख्या सीआरपीएफ की कंपनियों की होगी, जबकि बाकी कंपनियां बीएसएफ और अन्य सुरक्षाबलों की होंगी। जो अतिरिक्त 50 कंपनी यहां जाएगी उनमें अतिरिक्त 6500 अर्धसैनिक बल होंगे। यहां पहले से ही 40,000 केंद्रीय बल मौजूद हैं।
इसी बीच एक शरणार्थी कैंप में से कुछ व्यक्तियों के अपहरण और हत्या के बाद हिंसा के हालात और भी तेज़ हो गये। यहां तक कि दोनों समुदायों ने चर्चों और मंदिरों में भी तोड़ फोड़ की और उनको आग भी लगाई। मणिपुर में सरकार बुरी तरह फेल हो चुकी है। इस घटनाक्रम की कुछ हैरान करने वाली बातें हैं। जब ये दंगे भड़के थे तथा ऐसा गृह-युद्ध शुरू हुआ था तो इन्हें न सम्भाल सकने की ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री बिरेन सिंह पर डाली गई थी। तब ये समाचार भी आने लगे थे कि स्थिति को अच्छी तरह न सम्भाल सकने तथा इस सीमा तक बिगड़ने देने के कारण मुख्यमंत्री से इस्तीफा ले लिया जाएगा, परन्तु अब वहां खतरनाक हालात पैदा हो जाने के बाद भी कोई कदम नहीं उठाया जाना बड़ी हैरानी की बात यह है ।
अब जब यह हिंसा खत्म नहीं हो रही तो लोगों ने गुस्से में भाजपा विधायकों, मंत्रियों तथा मुख्यमंत्री तक के घरों पर हमले करने शुरू कर दिए हैं। इसके लिए उन्होंने वहां के कांग्रेस नेताओं को भी नहीं बख्शा। बात अकेले मणिपुर की नहीं है, बात देश के इस पूरे उत्तर- पूर्वी क्षेत्र की है, जहां पहले ही लगातार गड़बड़ होने के समाचार मिलते रहते हैं। लोग बड़े स्तर पर बंटे हुए दिखाई देते हैं, यहां की निरंतर बिगड़ती स्थिति को सुधारने के लिए कोई बड़े यत्न नहीं किए गए। मणिपुर एक छोटा राज्य है, परन्तु इसकी अशांत स्थिति का प्रभाव समूचे देश पर पड़ने से इन्कार नहीं किया जा सकता। राजनीतिक तौर पर मणिपुर में भाजपा की सहयोगी नैशनल पीपुल्स पार्टी ने इससे नाता तोड़ने की घोषणा कर दी है। कुकी समुदाय के भी 7 विधायक भाजपा से संबंधित हैं, परन्तु इसके बावजूद अभी यहां की सरकार के टूटने का कोई बड़ा खतरा नज़र नहीं आ रहा, परन्तु सरकार टूटने से भी बड़ा मामला भाईचारा बनाए रखने और शांति स्थापित करने का है, जिसका प्रभाव किसी न किसी रूप में समूचे देश पर पड़ेगा। माहौल को सम्भालने तथा एकसुर करने की ज़िम्मेदारी इस समय भाजपा और केंद्र सरकार की है। विशेष रुप से सरकार को मणिपुर संबंधी अपनी नीतियों पर पुनः सोचने तथा हालात को सुधारने के लिए तेजी से काम करने की ज़रूरत होगी।