Poto Ho Descendants Land Dispute (प्रकाश कुमार गुप्ता) : ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जिस पराक्रमी योद्धा पोटो हो ने सेरेंगसिया युद्ध में अंग्रेजों को घुटनों पर झुकाया था, दुर्भाग्यवश आज उसके ही वंशज बदहाली की जिंदगी जीने को विवश हैं। कोई जमीन की लड़ाई में उलझा हुआ है तो कई लोग परिवार समेत रोजगार की तलाश में पलायन कर गये हैं। वंशजों ने अपनी पुश्तैनी जमीन पर अवैध कब्जे मामले को फिर से उठाया है। इस मामले में वे 2 फरवरी को सेरेंगसिया शहीद दिवस समारोह में मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपेंगे। वे मांग रखेंगे कि उनकी 62 एकड़ पुश्तैनी जमीन पर जो अवैध दखल है, उसमें उनको न्याय दिलाया जाये ।
इस संबंध में राजाबासा में वंशजों की एक बैठक कोल्हान भूमि बचाओ समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार सावैयां की अध्यक्षता में हुई। इसमें सर्वसम्मति से सेरेंंगसिया आगमन पर मुख्यमंत्री के सामने समस्या रखने का निर्णय हुआ। पोटो हो के वंशजों का कहना है कि सरकारी कार्यालयों में पोटो हो का वंशज बताने पर उनको प्रमाण मांगा जाता है। सरकार ने उनको वंशज होने का प्रमाण पत्र दिया ही नहीं है, तो दिखाते क्या। इसलिये प्रमाण पत्र भी उनको दिया जाये।

साथ ही योग्य वंशजों को चतुर्थवर्गीय पदों पर नौकरी देने समेत अन्य मांगे रखी जायेगी। वंशज जापान पुरती, रमेश पुरती ने बताया कि मुख्यमंत्री से मिलने के लिये वंशजों का नेतृत्व कोल्हान भूमि बचाओ समिति के अध्यक्ष विनोद कुमार सावैयां करेंगे। श्री सावैयां ने भी इसकी पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि इस संबंध में राजाबासा में वंशजों के साथ उनकी बैठक भी हो चुकी है। सहमति बनी कि सभी सेरेंगसिया जायेंगे और सीएम या फिर उनकी अनुपस्थिति में मंत्री दीपक बिरूवा के सामने समस्या बतायेंगे। विनोद कुमार सावैयां ने कहा कि दुर्भाग्य तो ये है कि 2 फरवरी को सेरेंगसिया घाटी में जिस शहीद पोटो हो को श्रद्धांजलि दी जानी है, उन्हीं के वंशजों को निमंत्रण नहीं दिया गया है। यह निंदनीय है
क्या है जमीन मामला
पोटो हो के वंशज जापान पुरती, रमेश पुरती, रासिका पुरती आदि ने बताया कि पट्टाजैंत में उनकी 62 एकड़ पुश्तैनी जमीन पर दूसरों का अवैध दखल है। इस मामले में उन्होंने सीओ से लेकर उपायुक्त तक को ज्ञापन दिया गया था। मामले की थोड़ी बहुत जांच हुई पर नतीजा नहीं निकला। जांच ही निष्पक्ष नहीं थी। इसलिये वंशजों को न्याय अभी तक नहीं मिला है।
मुख्यमंत्री ने इन्हीं वंशजों को किया था सम्मानित
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कुछ वर्ष पहले इन्हीं वंशजों को सेरेंगसिया घाटी में आयोजित शहीद दिवस समारोह में पोटो हो के वंशज के रूप में सम्मानित किया था। वंशजों को सीएम ने मोबाईल तथा घरेलू सामान देकर सम्मानित किया था। पोटो हो के वंशज बताते हैं कि इसके बाद सरकार की तरफ से उनकी कभी खोज खबर नहीं ली गयी।
कौन था पोटो हो
सन 1837 में टोंटो प्रखंड के सेरेंगसिया घाटी में जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जो कोल विद्रोह हुआ था उसका नेतृत्व इसी पोटो हो ने किया था। आदिवासी लड़ाकों ने छापामार युद्धकला से इस युद्ध में नाको चने चबाने को विवश किया था। मान्यता है कि इस युद्ध में अंग्रेजी सेना के करीब 100 लोग मारे गये थे। वहीं 26 आदिवासी लड़ाके भी इसमें शहीद हुए थे। लेकिन इसके बाद पोटो हो को अंग्रेजों ने पकड़ लिया। और पहली जनवरी 1838 को जगन्नाथपुर में पीपल पेड़ में फांसी दे दी गयी थी।
ये हैं वंशज, पलायन कर गये कई परिवार
शहीद पोटो हो के दो दर्जन से अधिक वंशज हैं जो जगन्नाथपुर प्रखंड के राजाबासा गांव में रहते हैं। इनके नाम हैं- रमेश पुरती (68), श्रीराम पुरती (45), रासिका पुरती (35), राजेंद्र पुरती (25), सुखलाल पुरती 30 , जापान पुरती 27, अशोक पुरती 25, जगन्नाथपुर पुरती 55, सुनिका पुरती 50, मुश्ताक पुरती 30, अमित पुरती 27, सुमित पुरती 25, आकाश पुरती 23, सुजेन पुरती 20, नमलेन पुरती 18, राजू पुरती 65, बड़ा बाबू पुरती (35), अश्रिता पुरती , मंगल सिंह पुरती 55), संजीव पुरती 27, राजीव पुरती (25), सनातन पुरती, राम पुरती, धीरज पुरती, दुर्गा पुरती, सुकुमारी पुरती 18, शांति पुरती 12, लवली पुरती 11, लक्ष्मी पुरती 13, पायल पुरती 11, समीरा पुरती 7, श्रीसा पुरती, अश्रिता पुरती, पूजा पुरती, रश्मि पुरती, रूपा पुरती, अलीशा पुरती समेत अन्य शामिल हैं। लेकिन इनमें से राम पुरती, राजीव पुरती, सजीव पुरती का परिवार रोजगार की तलाश में हैदराबाद पलायन कर गया। कई बच्चों की पढ़ाई गरीबी में छूट गयी है। अधिकतर वंशज दिहाड़ी मजदूरी कर पेट पालते हैं। कुछ बिजली मिस्त्री तो कुछ दुकानों में काम करते हैं। जबकि अधिकतर का मुख्य पेशा कृषि है।