Religious Conversion in Jharkhand (प्रकाश कुमार गुप्ता) : नोवामुंडी प्रखंड के जेटेया थाना क्षेत्र के ग्राम गितिकेन्दु हेम्ब्रम टोला में लगभग एक साल पहले तिली कुई अपने सात बच्चों के साथ ईसाई धर्म अपनाकर चर्च में प्रार्थना करती थीं। लेकिन अब उन्होंने अपने परिवार के साथ वापस “हो” समाज की परंपरा और सरना धर्म में वापसी करने का निर्णय लिया। इस अवसर पर आदिवासी “हो” समाज युवा महासभा के जगन्नाथपुर अनुमंडल अध्यक्ष दियुरी बलराम लागुरी और सहायक दियुरी बुधराम अंगरिया की उपस्थिति में गांव के बुजुर्ग जॉन हेम्ब्रम द्वारा बोंगा-बुरू और आराः सांडि का मायोम जोरो कर (लाल मुर्गे की बलि चढ़ाकर) सभी आठ परिवार के सदस्यों को जाते-परचि (पवित्र) किया गया।
“हो” समाज की परंपरा के अनुसार, नये हंडी (नामा चाटु) में चाऊली और राम्बाः चढ़ाने की रिवाज को पुनः आरंभ किया गया। इस दौरान बने खाने, डियंग-रासी आदि को आदिंग में हाम हो – दूम हो (पूर्वजों) के नाम पर रूम सकम में बोंगा-बुरू किया गया।
तिली कुई ने बताया कि उनके पति स्व. सोनू हेम्ब्रम लंबे समय से बीमारी से ग्रस्त थे और बार-बार मुर्गा-बकरी की पूजा कराई जाती थी, लेकिन किसी भी पूजा स्थल के पुजारी ने उनके घर पूजा करने से इंकार कर दिया। आखिरकार उनके पति का निधन हो गया। तिली कुई ने आगे कहा कि इसके बाद उन्होंने ईसाई धर्म अपनाने का निर्णय लिया ताकि वह अपने बच्चों की बीमारी के लिए चर्च और गिरजाघर में प्रार्थना कर सकें। वे प्रत्येक रविवार को संत पॉल स्कूल, मालुका स्थित चर्च में प्रार्थना के लिए जाती थीं।
हालांकि, गांव में सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है। इस बदलाव से प्रभावित होकर, श्रीमति तिली कुई और उनके परिवार के सात अन्य सदस्य – उनकी 15 वर्षीय पुत्री सुशीला हेम्ब्रम, 13 वर्षीय पुत्री लेदगो हेम्ब्रम, 11 वर्षीय पुत्र दासो हेम्ब्रम, 9 वर्षीय पुत्री बलेमा हेम्ब्रम, 7 वर्षीय पुत्र माधो हेम्ब्रम, 5 वर्षीय पुत्र रोया हेम्ब्रम, और 3 वर्षीय पुत्री नमसी हेम्ब्रम – ने सोमवार को “हो” समाज की परंपरा और सरना धर्म में वापसी का फैसला लिया। इसके अलावा, यीशु-मसीह का फोटो, धार्मिक पुस्तकें और पम्पलेट्स को प्रेमपूर्वक उनके धर्म-प्रचारकों को वापस लौटा दिया गया।
इस आयोजन में डाकुवा पराय अंगरिया, जामदार पिंगुवा, मंगलसिंह पिंगुवा, रान्दो लागुरी, जामदार हेम्ब्रम, किरण हेम्ब्रम, दिलीप हेम्ब्रम, संजय हेम्ब्रम, दुलु पिंगुवा, माधो पिंगुवा, मुचिया लागुरी, घनश्याम लागुरी, देवेन्द्र लागुरी, मंगलसिंह लागुरी, जेमा बोबोंगा, मेंजो कुई, भजमति कुई, रानी कुई और अन्य गांववाले मौजूद थे।
यह घटना यह दर्शाती है कि धार्मिक बदलाव के बावजूद, पारंपरिक आदिवासी मान्यताएं और रिवाजों में वापसी की प्रक्रिया भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो समाज में संस्कृति और धार्मिक विश्वासों की निरंतरता को बनाए रखने में मदद करती है।